लेख
22-Oct-2024
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तुलसीदास भक्तिकाल की राम काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि है। तुलसी ने रामचरितमानस के ज़रिए भगवान राम की भक्ति को घर-घर तक पहुँचाया।तुलसीदास भक्तिकाल की राम काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि है। तुलसी ने रामचरितमानस के ज़रिए भगवान राम की भक्ति को घर-घर तक पहुँचाया।हिन्दुओं के सबसे बड़े धार्मिक ग्रंथों में एक रामचरितमानस का कई मुसलमान शासकों ने उर्दू-फारसी में अनुवाद करवाया है। राम वो नाम है जो हिन्दी, संस्कृत और उर्दू का भी भेद मिटा देते हैं।उर्दू, फारसी के अलावा कई भाषाओं रामचरित मानस का अनुवाद किया गया। गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस का अनुवाद अफ़्रीकेंस, असमिया, अवधी, भोजपुरी, गोंयची कोंकणी, गुजराती, कन्नड़, मैथिली, मराठी, नेपाली,मुंडारी, संथाली, भीली भाषा के बाद अंगिका में किया गया है। मुंडारी भाषा में इसका अनुवाद मझिया मुंडा (अब स्वर्गीय) ने किया है। अनुवाद में छत्रपाल सिंह मुंडा ने उनका सहयोग किया। मझिया मुंडा ने पुस्तक में लिखा है कि जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से प्रेरणा पाकर उन्होंने रामचरितमानस का मुंडारी भाषा में अनुवाद का बीड़ा उठाया था। उन्होंने अनुवाद की शुरुआत मार्च 1974 में की थी. एक साल बाद इसे पूरा किया। इस पुस्तक का प्रथम संस्करण 1988 में आया था। पुस्तक का संपादन साहित्यकार श्रवण कुमार गोस्वामी और दुलायचंद्र मुंडा (दोनों स्वर्गीय) ने किया है। इस पुस्तक का प्रकाशक स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती देश धर्म सेवा संस्थान कोलकाता है।पुस्तक में मूल्य की जगह लिखा हुआ है- वनवासी भाईयों की सेवा। अर्थात यह पुस्तक नि:शुल्क वितरण के लिए प्रकाशित की गयी थी।भानुशंकर गेहलोत ने वर्ष 2009 में भीली भाषा में रामायण लिखी थी। आदिवासी लोक कला परिषद भोपाल ने श्रीरामचरित मानस का भीली भावार्थ के साथ प्रकाशन किया गया था। हालांकि गेहलोत अब इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने 7 वर्ष के अथक परिश्रम के बाद श्री रामचरित मानस के हिंदी भावार्थ का भीली बोली में अनुवाद किया। यह इसलिए प्रासंगिक है कि इसके श्रवण करने से जनजातीय समुदाय को श्रीरामजी के चरित्र को भलीभांति समझने में मदद मिल सके। जनजातीय समुदाय के आराध्य देव प्रभु श्रीराम की लीलाओं को जानने के लिए उनका अभिनव प्रयास रहा। इन्हीं प्रयासों की श्रृंखला में अब अंगिका भाषा में भी रामचरित मानस उपलब्ध है। अंगिका बिहार-झारखंड के कई जिलों की भाषा है। इस भाषा में पहली बार रामचरितमानस का लेखन किया गया है। सनातन-धर्म के स्तंम्भ,विश्वब्यापी विशाल ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस को आधार स्वरूप मानकर अनुवाद और ब्याख्या के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। यह “अंगिका रामचरित मानस” भारतीय संस्कृति, आचार-विचार, सभ्यता का एक सुंदर धरोहर है । गोस्वामी तुलसीदास कृत “रामचरित मानस” का यह अनुवाद है, भक्ति ज्ञान और कर्म का समन्वय है । साथ ही इसमें रचयिता ने कुमारी रुपा ने अपने ब्यक्तिगत विचार भी प्रस्तुत किये हैं— ढोल, गंवार, शूद्र पशु, नारी “ जैसे कुछ विवादित विषय का बिल्कुल सही सटीक अर्थ भी प्रस्तुत किया है । यह मानस जन-मानस को धर्म और सांसारिक-कर्म से जोड़ने की अद्भुत कड़ी है । यह सहज जीवन से लेकर कठिन त्याग का अपूर्व संगम है। इसके अंतर्गत तुलसीदासजी के विचारों को अंगिका भाषा में प्रस्तुत करते हुए, उनके सारे आयामों को यथावत रखते हुए ,पाठ की लयबद्धता, पाठ के दौरान के विश्राम, सबको यथावत रखा गया है। रचयिता का अंगिका साहित्य में यह विशाल ग्रंथ तुलसीदास के मानस के आधार पर हू-ब-हू प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास है ,जो निश्चय ही अंगिका साहित्य को भी समृद्ध बनाने में पुर्ण सक्षम होगा । यह हर घर, जन-जन के लिए वंदनीय है,पूजनीय है, ग्राह्य है। लेखिका कुमारी रूपा के अनुसार रामायण भक्ति प्रेम आदर त्याग और उदारता का ग्रंथ है। उनकी मां ने बचपन में ही इस रामायण का बीज उनके अंदर बोया था; जो उर्वर हुआ गोरई की पवित्र धरती पर। उनके श्वसुरजी जमीन बेच कर रामायण पाठ कराते थे। उनके पति जीवन भर, मंगलवार को पाँच लड्डू भोग लगाकर सुंदर कांड का पाठ करने के बाद ही मुंह मे अन्न रखते थे । वही सब आज मेरे ‘अंगिका रामायण’ के रूप में फलित हुआ है। अंगिका बिहार के भागलपुर, बांका, मुंगेर और आस-पास के जिलों की भाषा है। साथ ही झारखंड के कुछ भागों में भी अंगिका बोली जाती है। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में अंगिका की पढ़ाई स्नातकोत्तर स्नातकोत्तर स्तर पर होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या और अंग देश के राजा रोम पद की पत्नी रानी वर्षिणी दोनों सगी बहनें थीं। श्री राम के जन्म से पहले कौशल्या ने एक पुत्री को जन्म दिया था, जिसे रानी कौशल्या ने अपनी बहन वर्षिणी को सौंप दिया।इस पुत्री का नाम शांता था, जो अंग देश की राजकुमारी बनीं। कहा जाता है कि कौशल्या ने अपनी बहन को वचन दिया था कि वो अपनी पहली संतान को उन्हें सौंप देंगी क्योंकि उनकी बहन वर्षिणी निसंतान थीं। इसके बाद जैसे ही शांता हुईं।राजा दशरथ ने अपने दिए वचन के अनुसार उन्हें अंग देश के राजा रोमपद को सौंप दिया। शांता का पालन पोषण अंग देश के राजा रोमपद के यहां ही हो रहा था। इस दौरान अंग देश में अकाल पड़ गया। जिस समय अंग देश में अकाल पड़ा, उस दौरान राजा रोमपद ने श्रृंगी ऋषि को अपने यहां आने का निमंत्रण दिया। ऐसा कहा जाता था कि श्रृंगी ऋषि जहां जाते थे. वहां बारिश होती थी इसलिए अंग देश के राजा ने श्रृंगी ऋषि को अंगदेश आने का निमंत्रण दिया।वहीं, श्रृंगी ऋषि राजकुमारी शांता की तरफ आकर्षित हुए और उनसे विवाह कर अंग देश में ही रहने लगे। अयोध्या नरेश राजा दशरथ चाहते थे कि उनका रघुकुल वंश आगे बढ़े. लेकिन उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी. उन्होंने पुत्रकामेश्ठि यज्ञ के लिए अंग प्रदेश ऋषि श्रृंगी को निमंत्रण भेजा।ऋषि श्रृंगी ने अपनी पत्नी एवं अंग देश की राजकुमारी शांता के साथ यज्ञ में शामिल होने की इच्छा प्रकट की।इसके बाद ऋषि श्रृंगी एवं राजकुमारी शांता भी राजा दशरथ द्वारा किए गए पुत्रकामेश्ठि यज्ञ में शामिल हुए। इस यज्ञ के बाद अयोध्या में राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ।अंगिका रामचरितमानस की लेखिका कुमारी रूपा के अनुसार इसके लेखन की शुरुआत एक मजाक से हुई थी। लेकिन भगवान श्रीराम की कृपा से आज यह महाकाव्य अपने पूर्ण रूप में आ चुका है। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले अंगिका भाषी समाज के बीच उन्होंने अंगिका में एक संदेश लिखा था।जिसकी लोगों ने खूब सराहना की थी। इसी दौरान मजाक-मजाक में यह बात हुई कि एक संदेश तो क्या मैं अंगिका में रामायण लिख सकती हूं। फिर कुछ दिनों बाद लोगों की प्रेरणा से उन्होंने अंगिका रामचरितमानस का बीड़ा उठाया और आज यह महाकाव्य पूर्ण रूप में अंगिका भाषियों के लिए उपलब्ध है। अंगिका रामचरितमानस की लेखिका कुमारी रूपा बिहार के बांका जिले के अमरपुर थाना क्षेत्र की गोरई जानकीपुर गांव की रहने वाली हैं। हालांकि अब बच्चों के साथ नोएडा में रहती हैं। हम अपने अंग क्षेत्र से भले ही दूर हुए हो लेकिन अब भी दिल में अंगिका जिंदा है। कुमारी रूपा के अनुसार अंगिका बिहार की सबसे पुरानी भाषा है। इसी से बिहार की अन्य भाषाओं का जन्म हुआ है। कुमारी रूपा इससे पहले भी कई उपन्यास, कविताओं की रचना कर चुकी हैं हालांकि अंगिका भाषा में यह उनकी पहली रचना है। उन्होंने बताया कि अंगिका रामचरितमानस की रचना के दौरान ही उन्होंने अंगिका में कई कविताएं लिखी। जो अंगिकाभाषियों द्वारा काफी पसंद की जा रही है। नेशन प्रेस द्वारा प्रकाशित अंगिका रामचरितमानस ऑनलाइन मर्चेंट शॉप फ्लिपकार्ड, अमेजन के साथ-साथ नेशनप्रेस की वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं। कुमारी रूपा ने अंगिका रामचरितमानस के कवर पेज पर लिखा है- अनुज जानकी सहित हे राम, धनुष बाण धरि हाथ हमरो ह्रदय गगन रो चांद बनी बसों सदा निष्काम किया गया है। ईएमएस / 22 अक्टूबर 24