लेख
18-Oct-2024
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भारत और कनाडा के बीच काफी लंबे समय से चली आ रही तनातनी अब दोतरफा राजनयिक कार्रवाई तक पहुंच गई है। इससे दोनों ही देशों के रिश्ते रसातल पर पहुंच गए हैं। यह सही है कि कनाडा ने भारत पर बहुत ही गंभीर आरोप लगाए हैं। मुमकिन है कि ऐसा आगामी चुनाव को देखते हुए कनाडा ने किया हो। निज्जर और पन्नू तो एक बहाना है, असल मकसद तो चुनाव साधना है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के पास जनता को बतलाने के लिए कुछ खास तो बचा नहीं है, ऐसे में भारतीय मूल के वोटरों के एक बड़े धड़े को खुश करने के लिए ऐसा किया जा रहा है। इस तरह से सियासी पैंतरेबाजी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर खूब चला है। नतीजा यह हुआ कि भारतीय उच्चायुक्त सहित छह राजनयिकों को निज्जर हत्याकांड से सीधे जोड़े जाने के चलते भारत ने कनाडा के डेप्युटी हाई कमिश्नर सहित छह राजनयिकों को देश छोड़ने को कह दिया और वहां से अपने राजनयिक बुलाने के आदेश दे दिए। अब चूंकि कनाडा में भारत विरोधी ताकतों का जमावड़ा लगा हुआ है और उन पर कोई कार्रवाई भी नहीं की जा रही है। ऐसे में रिश्तों में दरार बढ़ना लाजमी है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम घातक होंगे, जिसे दोनों ही देश नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। ऐसे में कनाडा सरकार के लिए बेहतर यही होगा कि वह अपने देश में जमें अलगाववादियों के खिलाफ ठोस और विश्वसनीय कार्रवाई करे और बातचीत के जरिए समस्या का समाधान निकाले। यदि ऐसा नहीं हुआ तो राजनयिकों के खिलाफ की गई दोतरफा कार्रवाई के अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक समीकरण पर भी इसका असर जरुर ही देखने को मिलेगा। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि निज्जर मामले के अलावा भारत को अलगाववादी और अमेरिकी-कनाडाई नागरिक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश संबंधी आरोपों का भी सामना करना पड़ रहा है। कनाडा से रिश्ते बिगड़ते देख अमेरिका भी मुखर हो गया है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जून 2023 में निज्जर की हत्या के बाद से कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो मानों बौखला गए हैं। उन्होंने पिछले साल ही 21 सितंबर को नई दिल्ली मे आयोजित जी20 शिखर बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। तब से ट्रूडो निज्जर की हत्या में किसी भारतीय एजेंट के हाथ होने का आरोप लगाते आ रहे हैं। खास बात यह है कि उन्होंने इन आरोपों को सिद्ध करने के कोई पुख्ता सबूत पेश नहीं किए। इससे भी जब दिल नहीं भरा तो कनाडा पुलिस ने अब एक नया संगीन आरोप लगाते हुए कह दिया कि कनाडा की नागरिकता वाले सिख अलगाववादियों को धमकाने के लिए पंजाब के लॉरेंस विश्नोई गेंग का इस्तेमाल भारत की ओर से हो रहा है। अब भले ही इस मामले में कोई पुख्ता सबूत पेश नहीं किए जा रहे हों, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत शक के दायरे में तो आता दिख ही रहा है। इससे अलगाववादी ताकतों को ही बल मिलेगा और आज नहीं तो कल ये ताकतें कनाडा समेत अन्य देशों के गले की फांस भी बनते देर नहीं लगाएंगी। यदि ऐसा नहीं है तो क्या कारण है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कनाडा की सड़कों पर भारत विरोधी प्रदर्शन होते हैं और नारे लगाए जाते हैं। यही नहीं भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी लगाकर दिखाई जाती है और कनाडा का शासन-प्रशासन मूक दर्शक बना सब होते हुए देखता रहता है। कुछ ऐसा ही नजारा अमेरिका और ब्रिटेन में भी देखने को मिले। अब इसका विस्तार अन्य और देशों में भी हो सकता है, क्योंकि साझेदार देशों में इसे लेकर संवेदनशीलता तो देखने को मिलती ही है। आगे चलकर यदि ऐसा ही कुछ ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी देखने को मिले तो हैरानी नहीं होगी, क्योंकि इन देशों में सिख प्रवासियों की संख्या अच्छी खासी है। इस पर भारत सरकार को गौर करने की आवश्यकता है। इससे पहले कि मामला हाथ से निकले और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इसे लेकर सियासत शुरु हो बातचीत के लिए एक माहौल तैयार करने की आवश्यकता है। यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि कनाडा ने न केवल अमेरिका को इस घटनाक्रम की पूरी जानकारी दी है, बल्कि अपने साझेदार अन्य देशों के प्रतिनिधियों के साथ संयुक्त बैठक कर उन्हें भी यथास्थिति से अवगत कराने का बड़ा काम कर दिया है। इसलिए आशंका है कि भविष्य में भारत के इन देशों से भी रिश्ते पटरी से उतरते दिख सकते हैं। अंतत: भारत के पड़ोसी देशों में जिस तरह के हालात बने हैं, उन्हें देखते हुए भारत को और मुल्कों से संभलकर रिश्ते कायम रखने होंगे। स्थिति बेहतर हो और सकारात्मक बातचीत के जरिए समस्याओं का समाधान निकले। इससे विश्वशांति की ओर अग्रसर होने का संदेश देने में भी भारत सफल हो सकेगा, जिससे विकास के तार भी जुड़े हैं। ईएमएस/ 18 अक्टूबर 24