संघ का मूल ध्येय, राष्ट्र का परम वैभव आज जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विश्व के सबसे बड़े संगठन के रूप में जाना जाता है, उसकी नींव डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने रखी थी। संघ को जानने का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति को इसके संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के जीवन से परिचित होना जरूरी है, जोकि अपने जीवनकाल में स्नेहपूर्वक ‘डॉक्टरजी’ के रूप में जाने जाते थे। डॉक्टरजी ने जब संघ की स्थापना की, उनकी आयु 36 वर्ष थी। उनके स्वयं के मन में राजनेता बनने की कोई इच्छा नहीं थी, क्योंकि यदि वे राजनेता ही बनना चाहते तो अपनी व्यक्तिगत कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने एक राजनैतिक पार्टी की स्थापना की होती, किंतु यह सब उनका लक्ष्य नहीं था। राष्ट्रीय भावना का परिचय “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रादुर्भाव उस समय हुआ, जब अंग्रेजों की दासता में भारतीय संस्कृति का सर्वनाश हो रहा था। इससे व्यथित होकर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। उनमें समाज सेवा तथा देशभक्ति कूट-कूटकर भरी थी। उन्होंने बाल्यावस्था में ही बालकों के साथ मिलकर सीतावर्डी के दुर्ग से अंग्रेज यूनियन जैक का झंडा उतारने के लिए सुरंग बनाने की योजना बना डाली थी। इससे उनकी राष्ट्रीय भावना का परिचय मिलता है”। सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी के पावन अवसर पर 1925 में की थी। प्रतिनिधि सभा, मार्च 2024 के अनुसार- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 922 जिलों, 6597 खंडों और 27,720 मंडलों में 73,117 दैनिक शाखाएं हैं, प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल हैं। समाज के हर क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से विभिन्न संगठन चल रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं। संघ के विरोधियों ने तीन बार इस पर प्रतिबंध लगाया - 1948, 1975 एवं 1992 में। लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा। संघ एक सामाजिक—सांस्कृतिक संगठन है। जीवंत सम्बन्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ‘हिन्दू’ शब्द की व्याख्या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में करता है जो किसी भी तरह से (पश्चिमी) धार्मिक अवधारणा के समान नहीं है। इसकी विचारधारा और मिशन का जीवंत सम्बन्ध स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविन्द, बाल गंगाधर तिलक और बी. सी. पाल जैसे हिन्दू विचारकों के दर्शन से है। स्वामी विवेकानंद ने यह महसूस किया था कि “एक सही अर्थों में हिन्दू संगठन अत्यंत आवश्यक है जो हिन्दुओं को परस्पर सहयोग और सराहना का भाव सिखाए”। ‘स्व’ के भाव स्वामी विवेकानंद के इस विचार को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने व्यवहार में तब्दील कर दिया। उनका मानना था कि हिन्दुओं को एक ऐसे कार्य-दर्शन की आवश्यकता है जो इतिहास और संस्कृति पर आधारित हो, जो उनके अतीत का हिस्सा हो और जिसके बारे में उन्हें कुछ जानकारी हो। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाएं ‘स्व’ के भाव को परिशुद्ध कर एक बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हित की भावना में मिला देती हैं। वस्तुतः हम यह कह सकते हैं कि हिन्दू राष्ट्र को स्वतंत्र करने व हिन्दू समाज, हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र कों परम वैभव तक पहुँचाने के उद्देश्य से डॉक्टर साहब ने संघ की स्थापना की। महान भारत का संकल्प संघ कोई राजनीतिक दल नहीं है, अपितु एक सामाजिक संगठन है। इसकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है, और न ही यह राजनीतिक परिणामों के लिए काम करता है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीतिक जीवन पर इसका प्रभाव परिलक्षित होता है, तो भी यह राजनीति से दूर ही रहता है। इसकी शाखा पद्धति में जरूर ऐसे स्वयंसेवक तैयार हुए हैं, जो आज राजनीति में उच्च स्थानों पर हैं। संघ का साधारण सिद्धांत यह है कि संघ शाखा चलाने के सिवाय कुछ नहीं करेगा और स्वयंसेवक कोई कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ेगा। स्वयंसेवक समाज के सभी क्षेत्रों यथा- शिक्षा, राजनीति, अर्थशास्त्र, सुरक्षा व संस्कृति इत्यादि क्षेत्रों में काम करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का केवल एक ही ध्येय है- भारत को महान बनाना। संघ एक सशक्त हिन्दू समाज के निर्माण के लिए सभी जाति के लोगों को एक करना चाहता है। हेमेन्द्र क्षीरसागर , 12 अक्टूबर 2024 (ईएमएस)