लेख
11-Oct-2024
...


शिर्डी के सांई बाबा के 106वें निर्वाण महोत्सव पर उनके कुछ सिद्धांतों का जिक्र करना प्रासंगिक होगा। पहला तो यह कि उन्होंने कभी भी नहीं कहा कि मुझे भगवान मानो या मेरी पूजा करो अथवा मेरे मंदिर बनवाओ। दूसरी बात जो आज भी बहुत मौजूं लगती है, वह यह कि उन्होंने ‘सबका मालिक एक ’ जैसा सर्वमान्य मंत्र दिया, जिसकी जरूरत आज पूरे विश्व को महसूस हो रही है। सारे झगड़े इसी बात को लेकर हो रहे हैं, चाहे भारत हो अथवा मुस्लिम देश। एक ओर महत्वपूर्ण बात सांई बाबा ने सबको बताई है, वह यह कि जीवन में श्रद्धा और सबूरी रखना चाहिए। इस तरह सांई बाबा ने ‘ सबका मालिक एक ’ और ‘ श्रद्धा एवं सबूरी ’ जैसे दो सूत्र ऐसे दिए हैं, जो आज पूरी दुनिया के प्रत्येक मसले का हल करने में सक्षम है। महाराष्ट्र के परभणी जिले के पास पाथरी गांव में 18वीं शताब्दी में एक मराठी ब्राह्मण परिवार के घर उनका जन्म हुआ था, हालांकि बाबा का पहनावे सूफी संत जैसा होने से उन्हें पिछले कुछ समय से चांद मियां के नाम से, मुस्लिम परिवार में जन्मे और अन्य बातों को लेकर उन्हें मुस्लिम करार देने के कारण एक नया विवाद छेड़ दिया गया है, जबकि देश के प्रमुख समाचार चैनल जी न्यूज की टीम ने पाथरी जाकर जो जानकारी प्राप्त की है, उसके अनुसार सांई बाबा के पिता का नाम गंगा भाऊ, माताजी का नाम देवकी गिरि और उनके पांच बेटे थे – रघुपत भुसारी, दादा भुसारी, हरि भाऊ, अंबादास एवं बालवद भुसारी। इनमें तीसरे नंबर के हरि भाऊ भुसारी ही आगे जाकर सांई बाबा के नाम से प्रख्यात हुए। यह भी एक तथ्य है कि हरि भाऊ का बाल्यकाल पास में रहने वाले एक मुस्लिम परिवार में हुआ। शायद इसीलिए उनका पहनावा फकीर और संत जैसा रहा। उनके जन्म और निर्वाण के समय देश में अंग्रेजों का शासन था, उस समय के हालातों को देखते हुए कुछ लोगों ने उन्हें धर्म विशेष से जोड़ दिया। भारत वर्ष में सदियों से संत महापुरुषों एवं ईश्वरीय अवतारों का समय-समय पर प्राकट्य होता रहा है। भगवान राम से लेकर श्रीकृष्ण, महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, ईसामसीह, गुरूनानक और पैगाम्बर सहित अनेक अवतार हैं, जिन्हें हम मानते और पूजते आ रहे हैं। इन सभी अवतारों ने ईश्वरीय शक्ति एवं अपनी आध्मयात्मिक उर्जा से जन साधारण के मन में श्रद्धा और आस्था का जो अंकुरण किया है, वह अब वट वृक्ष बन चुका है। महाराष्ट्र की बात करें तो पिछली सदी से लेकर अब तक संत तुकाराम, गजानन महाराज, कबीर और इसी श्रृंखला में सांई बाबा का भी नाम है, जिन्हें भक्तों ने पहले संत फिर महात्मा और अब भगवान के रूप में पूजना शुरू कर दिया है। यहां सवाल किया जा सकता है कि अपनी व्यक्तिगत श्रद्धा और आस्था पर सवाल खड़े करने वाला व्यक्ति कौन सा अधिकार रखता है, जब संबंधित आस्था केन्द्र के साथ न तो कोई पब्लिसिटी टीम या मीडिया रहा न कोई पीआरओ और न कोई चंदा इकट्ठा करने वाला कोई गिरोह, जैसा कि आजकल लगभग सभी धर्मस्थलों पर देखने को मिलता है। देश के सभी प्रमुख धर्म स्थल प्रतिमाह करोड़ों की राशि भक्तों से संग्रहित कर रहे हैं। सांई बाबा ने कहीं भी कोई ऐसी बात नहीं कही है, जिससे सामाजिक सदभाव या भाईचारे को ठेस पहुंचती हो। उन्होंने जो दोनों बातें कहीं हैं वे आज 100 वर्ष बाद भी प्रासंगिक सिद्ध हो रही है। सांई बाबा ने 1918 में विजयादशमी के दिन दोपहर 2.30 बजे अपना शरीर त्याग दिया। आज पूरे विश्व में उनके प्रति श्रद्धा रखने वाले लोग लाखों की संख्या में मौजूद हैं। यह मान्यता है कि बाबा अपने भक्तों की मन्नतें या मुरादें जरूर पूरी करते हैं। हजारों भक्तों के जेहन में बाबा की भक्ति और उसके सार्थक परिणामों की अनुभूति जमा है, जिनसे पता चलता है कि बाबा अपने भक्तों की करूण पुकार पर दौड़े चले आते हैं और भक्तों के संकट दूर कर देते हैं। ‘सांई सदचरित्र’ के 51 अध्यायों में बाबा की अनेक लीलाओं का उल्लेख किया गया है। बाबा ने जीवन पर्यंत भीक्षावृत्ति करते हुए भक्तों का उद्धार किया। उनके पास न तो कोई बैंक खाता था और न ही कोई फिक्स डिपाजिट, उनका कोई काम-धंधा या धन को छुपाकर रखने का जरिया भी नहीं था। वे खाली हाथ तो आए लेकिन अपने साथ लाखों भक्तों की श्रद्धा और आस्था लेकर गए। धर्म, संप्रदाय, जाति और मजहब से ऊपर उठकर यदि सांई बाबा के महाप्रयाण के 106 वर्ष बाद उनके दोनो सिद्धांतों को समझें तो दुनिया की सारी दिक्कतें दूर हो सकती हैं। वर्तमान में जिस दौर में देश-देश और धर्म-धर्म या मजहब-मजहब के बीच टकराव और एक-दूसरे के प्रति नफरत के हालात बने हैं वे सांई बाबा के ‘सबका मालिक एक’ तथा ‘श्रद्धा और सबूरी’ जैसे दोनों सिद्धांतों पर चलकर हल किए जा सकते हैं। आज बाबा की 106वीं पुण्यतिथि बनाम निर्वाण महोत्सव पर यही कामना की जा सकती है कि बाबा को लेकर चल रहे सारे विवादों का पटाक्षेप हो और सब अपनी-अपनी श्रद्धा भक्ति के अनुरूप अपने आराध्य के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते रहें। (लेखक - हरि अग्रवाल, केन्द्रीय सांई सेवा समिति, इन्दौर के संस्थापक अध्यक्ष है) उमेश/पीएम/11 अक्टूबर 2024