- नेताओं की बयानबाजी व गुटबाजी ने कांग्रेस की जीती बाजी पलटी नई दिल्ली,(ईएमएस)। हरियाणा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस के सिर सजने वाला ताज अचानक छिन गया। वहीं जम्मू कश्मीर में भले ही कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर जीत हासिल की हो, लेकिन इसमें उसका प्रदर्शन सीमित है। हरियाणा में बीजेपी 39.94 फीसदी और कांग्रेस 39.09 फीसदी वोट पाकर भी कांग्रेस ग्यारह सीटों के अंतर से सत्ता पाने से चूक गई। जम्मू कश्मीर में कांग्रेस करीब 12 फीसदी वोट पाकर सिर्फ छह सीटें जीती है। जम्मू संभाग में जहां उसे बीजेपी को रोकना था, वहां कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। यहां 29 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस महज एक सीट जीत पाई, जबकि पांच सीटें उसे कश्मीर संभाग से मिली है। 2014 में कांग्रेस को जम्मू में पांच सीटें मिली थीं। हरियाणा में आपसी नतीजों और गुटबाजी ने कांग्रेस की जीती हुई बाजी को पलट दिया। सीएम पद को लेकर भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला की बयानबाजी एक बार फिर पार्टी के लिए भारी पड़ गई। इस गुटबाजी का नतीजा यह रहा कि सैलजा चुनाव प्रचार में निकली हीं नहीं, जबकि सुरजेवाला अपने बेटे के चुनाव को लेकर कैथल में उलझे रहे। आपसी गुटबाजी व कलह ने जमीन पर लोगों के बीच कांग्रेस की जीत की संभावनाओं को धूमिल कर दिया। इसके अलावा, जमीन पर काम करने वाले अपने कार्यकर्ताओं की अनदेखी कर चुनाव से ऐन पहले पार्टी में शामिल होने वालों को टिकट और तवज्जो देना भी पार्टी को भारी पड़ गया। जीत की संभावनाओं पर फूली कांग्रेस जब चुनाव प्रचार के खत्म होने से महज कुछ घंटों पहले अशोक तंवर की वापसी कराती है तो इसे भी जमीन पर पार्टी का आत्मविश्वास और अहंकार माना गया। वहीं कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण नेताओं के अपने अहंकार के चलते आम आदमी पार्टी के साथ तालमेल न होना भी है। राहुल गांधी के कहने के बाद भी प्रदेश नेतृत्व इसके लिए तैयार नहीं था। नतीजा, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस-बीजेपी के करीब 0.84 फीसदी के अंतर से ज्यादा 1.90 वोट ले गई। अगर तालमेल होता तो कांग्रेस शायद सरकार में होती। हुड्डा की सक्रियता के चलते जाट वोटों को साधते-साधते कांग्रेस प्रदेश की बाकी बिरादरियों पर फोकस नहीं कर पाई। यही वजह कांग्रेस की हार का कारण बनी। वहीं दलित वोटों को अपना मानने वाली कांग्रेस दलितों को भी पूरी तरह साधने में नाकाम रही। बीएसपी और चंद्रशेखर आजाद के साथ जाट दलों के तालमेल ने भले ही अपने लिए कोई खास करिश्मा न किया हो, लेकिन कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। इन नतीजों का असर आने वाले दिनों में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों से लेकर विपक्ष की रणनीति पर भी पड़ेगा। महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस की बारगेनिंग पावर कमजोर होगी। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस के पास बड़े नेताओं की फौज और उनके अहंकार हैं, जो पार्टी हितों पर भारी पड़ सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस लीडरशिप को इनकी आंकाक्षाओं और बयानबाजियों पर रोक लगानी होगी। इन नतीजों का असर कहीं न कहीं इंडिया गठबंधन के भीतरी समीकरणों पर भी पड़ेगा। सिराज/ईएमएस 10 अक्टूबर 2024