| लिखना तो नहीं चाहिए ,लेकिन लिख रहा हूँ ,क्योंकि नहीं लिखूंगा तो अपराध बोध सताता रहेगा। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के नतीजे ठीक वैसे ही आये हैं जैसे मै सोच रहा था । मैंने पहले ही कहा था कि - जब हथेली पर आम उगाया जा सकता है तो बर्फ में कमल भी खिलाया जा सकता है। कमल बर्फ में भी खिला है और मैदान में भी। इसके लिए बधाई दूंगा सत्तारूढ़ भाजपा को और उस प्रबंधन को जो जनादेश और हवाओं पर भी भारी पड़ा। बधाई जीते हुए सभी दलों के प्रत्याशियों को और संवेदना जीत कर भी हारे सभी दलों केतमाम प्रत्याशियों को। हरियाणा में लोकतंत्र जीता या हारा ? इस मुद्दे पर बहस अब बेमानी है। बेमानी इसलिए है क्योंकि अब भारत के चुनाव उस दौर में आ चुके हैं जहां ईमान की परिभाषा ही बदल गयी है। एक जमाना था जब दुनिया भारत के चुनाव इसलिए दिलचस्पी से देखती थी ,क्योंकि यहां चुनाव एक यज्ञ की तरह था । लेकिन अब चुनावों में न दुनिया की दिलचस्पी रही और न आने वाले दिनों में आम जनता की दिलचस्पी रहेगी। जनता अगर भाजपा को 400 पार करने से रोकेगी तो उसे पलटकर जबाब मिलेगा। जबाब मिल रहा है। अब भारत के चुनावों में आप किसी एक को निशाने पर नहीं रख सकते । अब चुनाव में मशीनें, केंचुआ,और जादूगर तक शामिल हो गए हैं। हमने बचपन में सुना था कि जादूगर या उनकी प्रजाति के लोग बरसात में पानी बाँध देते हैं,शादियों के मौसम में आँधियों को रोक देते हैं लेकिन बुढ़ापे में हम और आप ऐसा होते देख रहे हैं। पिछले साल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की आंधी को जादू से रोक दिया गया। 2024 के आम चुनाव में जादू कम चला ,लेकिन चला ,लेकिन हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में ये जादू फिर पुरअसर नजर आ रहा है। जहाँ भाजपा को हारना था,वहां भाजपा अप्रत्याशित तरीके से जीती है। भाजपा को जीत का मंत्र मिल गया है। हवाएं लाख भाजपा के खिलाफ चलें लेकिन भाजपा आगे भी सभी चुनाव जीतेगी। भाजपा चुनाव जीत रही है इसका मतलब ये तो नहीं कि भारत में चुनाव होना बंद हो जायेंगे । चुनाव तो होंगे लेकिन अब चुनावों में वैसा उत्साह नहीं होगा जैसा अभी तक होता आया था। भाजपा को कांग्रेस बनने के लिए अभी और कई चुनाव जीतना हैं और वो जीतेगी । कांग्रेस चुनाव जीतती थी अपने संगठन और विचारधारा के कारण। अपने नारों के कारण, अपनी विरासत के कारण ,लेकिन अब इन्हीं वजहों से कांग्रेस हार भी रही है । कांग्रेस हार रही है इसका सीधा सा अर्थ ये है कि अब भाजपा से कोई दूसरा दल लोहा ले भी नहीं सकता। अब कांग्रेस के वजूद का संकट नहीं है ,संकट उन क्षेत्रीय दलों के वजूद का है जो पिछले चार दशक में दक्षिण की तरह गोबर पट्टी में भी कुकुरमुत्तों की तरह उग आये थे। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधान सभा के चुनावों में कांग्रेस तो जैसे -तैसे भाजपा के प्रबंधन और जादू के बावजूद अपने वजूद को बचाने में कामयाब हो गयी लेकिन क्षेत्रीय दलों का या तो सूपड़ा साफ़ हो गया या वे चुनाव लड़ते हुए बुरी तरह से जख्मी कर दिए गए। ये सब इसलिए हुआ क्योंकि इन दलों ने न गठबंधन का महत्व समझा और न जनमानस की अपेक्षाओं को पहचाना। दूसरे प्रदेशों की तो जाने दीजिये लेकिन हरियाणा के चुनावीं महाभारत में तमाम सरे लाल चित हो गए। भाजपा जिस परिवारवाद को लेकर चुनावी मैदान में उतरी थी उसने अपना काम कर दिखाया। लेकिन जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़े अब्दुल्ला ख़ानदान को भाजपा चाहकर भी चित नहीं कर पायी या उसने जानबूझकर अब्दुल्ला परिवार से पंगा नहीं लिया ये आने वाले दिनों में पता चलेगा। विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ दल पर बेईमानी का आरोप मै इसलिए नहीं लगाऊंगा क्योंकि ऐसा करने से ईमानदारी को आघात पहुंचेगा । ईमानदारी से भाजपा का दूर-दूर का रिश्ता नहीं है। कांग्रेस को उसी समय सावधान हो जाना चाहिए था जब हरियाणा के नबाब सिंह सैनी ने ये रहस्योद्घाटन कर दिया था कि उन्होंने जीत का इंतजाम कर लिया है। चुनाव से एक दिन पहले माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दस मोदी जी ने भी सैनी की बात कोई पुष्टि की थी। चुनाव जीतने के लिए इंतजाम करना भाजपा का मौलिक अधिकार है। कांग्रेस को भी ये अधिकार है लेकिन सत्ता उसके पास नहीं है इसलिए वो चाहकर भी अपनी जीत सुनिश्चित नहीं कर सकती थी। लेकिन इन चुनाव परिणामों से एक बात जाहिर है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस का काम और बढ़ गया है। अगले महीने महाराष्ट्र में भी विधानसभा के चुनाव हैं। बिहार और झारखण्ड में भी विधानसभा के चुनाव होना है। भाजपा जिस तरीका-ये - वारदात से मप्र,छग और राजस्थान के बाद हरियाणा जीती है उसी तरीके से महाराष्ट्र भी जीत सकती है ,बिहार भी जीत सकती है । झारखंड को वो छोड़ भी देगी ,क्योंकि ऐसा कर वो अपनी ईमानदारी को प्रमाणित करना चाहेगी। महाराष्ट्र में इस समय सब कुछ बिखरा-बिखरा लग रहा है। ये बिखराव बिहार में भी साफ़ दिखाई दे रहा है किन्तु इन दोनों राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं। ऐसे में भाजपा इन दोनों राज्यों में भी अपना जादू किये बिना मानेगी नहीं और आप लिखकर रख लीजिये की इन दोनों राज्यों में घाटे में कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के सहयोगी दल रहेंगे । मुमकिन है कि आप भाजपा के जादू से प्रभावित न हों लेकिन मैंने तो मान लिया है कि यदि इस देश में कांग्रेस भाजपा को नेस्तनाबूद नहीं कर सकती तो कोई दूसरा दल ऐसा नहीं है जो भाजपा का बाल भी बांका कर सके। भारत के चुनावों का पैटर्न अचानक नहीं बदला है। ये पैटर्न रूस के उस पैटर्न जैसा है जहाँ कोई भी चुनाव हो पुतिन की पार्टी को ही जीत मिलती है । भारत में भी इक्का-दुक्का चुनावों को छोड़ अब भाजपा ही जीत रही है । कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को भाजपा से ईर्ष्या करने के बजाय ,हार मानने के बजाय नई ऊर्जा और नए साहस के साथ चुनाव लड़ना चाहिए । आखिर एक न एक दिन हर जादू बेअसर होता है। फिर चाहे वो बंगाल का कला जादू हो या लाल जादू। लोकतंत्र में कोई भी जादू ज्यादा दिन नहीं ठहरता । कांग्रेस का भी नहीं ठहरा तो भाजपा का जादू कोई अमरौती खाकर थोड़े ही आया है। मै उस चर्चित शेर को तोड़-मरोड़कर लिख रहा हों कि - सर फरोशी की तमन्ना यदि तुम्हारे दिल में है सोचना मत जोर कितना बाजुए कातिल में है।