हरियाणा के चुनाव परिणाम और रुझानों ने एक बार फिर एग्जिट पोल को झूठा साबित कर दिया है ।यहां बीजेपी लगातार तीसरी बार राज्य में सरकार बनाने जा रही है। अभी तक के रुझानों के हिसाब से बीजेपी पूर्ण बहुमत की सरकार बना सकती है। हरियाणा को लेकर जारी एग्जिट पोल पर खुशी मनाते कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के लिए मतगणना का दिन अच्छा नहीं रहा। जम्मू कश्मीर के चुनाव परिणाम भी कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत ज्यादा खुशी लेकर नहीं आए हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हो रही है।यहां उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।भाजपा यहां मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी है।कांग्रेस पार्टी जम्मू कश्मीर के चुनाव में जम्मू क्षेत्र में यदि अच्छा प्रदर्शन करती तो शायद यह पार्टी और उसके भविष्य के साथ साथ गठबंधन की सरकार को मजबूती प्रदान करता ,लेकिन परिणाम उसके उलट ही रहे है।हार के कारणों को गिने तो 10 सालों से सत्ता से बाहर रही कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता कुछ शिथिल पड़ गए हैं। पार्टी ने चुनाव के लिए देर से कमर कसती है। 10 सालों में राज्य में कांग्रेस पार्टी बीजेपी सरकार की कमी और लोगों के मुद्दों को जोरदार ढंग से उठा नही पाई। लोकसभा चुनाव में हालांकि कांग्रेस ने बेहतर परिणाम दिए थे और हरियाणा राज्य की 10 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी।कांग्रेस पार्टी के भीतर गुटबाजी ने कार्यकर्ताओं तक को एक दूसरे से दूर रखा । इस गुटबाजी को साफ तौर पर देखा भी गया है।कांग्रेस पार्टी के तीन वरिष्ठ नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा, कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला के समर्थकों में एक राय न होना , तीनों ही नेताओं के कार्यकर्ता अपने अपने नेताओं को सीएम पद की दौड़ में सबसे आगे देखने की होड़ के चलते यह लुटिया डूबी है। रणदीप सुरजेवाला की ओर से भले ही कोई बयान न आया हो, लेकिन हरियाणा राज्य की कांग्रेस पार्टी की राजनीति में वह भी एक धुरी बन गए थे. वहीं, भूपिंदर सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के बीच की कड़वाहट सार्वजनिक मंचों पर देखने को मिल रही थी। दोनों ही नेताओं की सीएम बनने की इच्छा उनके ही बयानों से सामने आ रही थी। उक्त दोनों ही नेता पार्टी आलाकमान पर नेता चुनने की बात कह रहे थे लेकिन अपनी बात भी स्पष्ट रख रहे थे।पार्टी का सीएम पद का ऐलान न करना भी नुकसान देह रहा है। यदि पार्टी पहले से ही सीएम पद का ऐलान कर देती तो यह गुटबाजी देखने को नहीं मिलती। कार्यकर्ताओं में जोश बराबर रहता और सभी एक नेता के नाम के साथ जनता के बीच जा सकते थे। जनता के मन में भी किसी प्रकार का कोई संशय नहीं होता। लेकिन कांग्रेस पार्टी अपने नेताओं की अंतर्कलह को अंत तक सुलझाने में कामयाब नहीं हो पाए। हालात कितने खराब थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता एग्जिट पोल के बाद से ही अपनी-अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने में लगे रहे, यहां तक की आज मतगणना के दिन भी मीडिया को दिए बयानों में कांग्रेस के सीएम पद के दावेदार अपनी कुर्सी पक्की मानकर चल रहे थे।भूपिंदर सिंह हुड्डा तो दिल्ली का दौरा भी कर गए।दलित समाज के वोटों का सरकना भी कांग्रेस हार का एक कारण रहा। लोकसभा चुनाव में जाट और दलित वोटों ने कांग्रेस पार्टी का बेड़ा पार किया था, लेकिन अब कहा जा रहा है कि पिछले कुछ महीनों में दलित वोट एक बार फिर छटक कर बीजेपी के पाले में चला गया था। राज्य में जाटों का वोट प्रतिशत करीब 22 प्रतिशत है, जबकि 20 प्रतिशत दलित वोट हैं। दलितों का वोट पार्टी से जाना कांग्रेस के लिए एक सदमा दे गया। राज्य में ओबीसी वोट और दलित वोट इस बार फिर बीजेपी के पक्ष में चला गया है। साथ ही कांग्रेस पार्टी का पूरा जोर जाट वोट पर था ,जिसका खामियाजा पार्टी अब हार के रूप में भुगत रही है। राज्य में इंडी अलायंस न बन पाने के कारण इंडी अलायंस के दो दल कांग्रेस से नाराज़ हो गए। राज्य में आम आदमी पार्टी कांग्रेस पार्टी से 90 सीटों में से 10 सीटों की मांग कर रही थी जबकि समाजवादी पार्टी भी राज्य में 2 सीटों को चाह रही थी। लेकिन अंतिम समय तक इन दलों में सहमति नहीं बन पाई। आम आदमी पार्टी ने नाराजगी में अपने 29 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी ,हालांकि उसे भी शून्य पर सिमटना पड़ा है।आम आदमी पार्टी केवल 4 सीटों पर कुछ असर डाल रही थी, लेकिन कांग्रेस पार्टी का कहना है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस की अच्छे परफॉर्मेंस वाली सीटों की मांग कर रही थी। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं भूपिंदर सिंह हुड्डा, रणदीप सुरजेवाला ने गठबंधन के विरोध में अपनी राय व्यक्त की थी। पार्टी की ओर इस कार्य के लिए तैनात किए गए नेता अजय माकन ने दोनों की बात को स्वीकारा और अंतत: गठबंधन नहीं हो पाया।जिस कारण आम आदमी पार्टी का दो प्रतिशत वोट कांग्रेस के हाथ से फिसल गया।कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय स्तर के बाद राज्य स्तर पर आंतरिक गुटबाजी को खत्म करना चाहिए था,यह साफ देखा जा सकता है कि भीतरी कलह पार्टी को नुकसान पहुंचाती है और भविष्य में इस प्रकार के नुकसान से बचने के लिए पार्टी को कदम उठाने पड़ेंगे।कांग्रेस पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओ को हर अहम मुद्दे पर लोगों के बीच जाना होगा और सरकार पर दबाव बना होगा ताकि पार्टी का रुख लोगों के सामने साफ हो सके।कांग्रेस पार्टी अपने वोटों को बिखरने से बचाने के लिए कदम उठाए और नए वोटों को जोड़ने के लिए कदम उठाए। कांग्रेस की सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की क्षमता में बाधा डालने वाला एक और कारक उसकी अप्रभावी अभियान रणनीति रही। पार्टी का चुनाव अभियान काफी हद तक प्रतिक्रियात्मक था, जिसमें हरियाणा के लिए एक सम्मोहक दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के प्रदर्शन की आलोचना करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। जबकि बेरोजगारी, किसान संकट और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे उठाए गए, कांग्रेस इन चिंताओं पर मतदाताओं से पर्याप्त रूप से जुड़ने या ठोस समाधान पेश करने में विफल रही है।सत्ता विरोधी लहर का सामना करने के बावजूद, भाजपा स्थानीय वास्तविकताओं के अनुसार अपनी रणनीति को ढालकर कुछ हद तक नुकसान को कम करने में कामयाब रही। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, हालांकि किसान विरोध और कानून व्यवस्था के मुद्दों से निपटने के लिए आलोचना के शिकार हुए, लेकिन साथ ही वे एक गैर-भ्रष्ट, सुलभ नेता की छवि बनाए रखने में कामयाब रहे। गैर-जाट समुदायों से उनकी अपील ने भाजपा को वोटों का एक बड़ा हिस्सा बनाए रखने में मदद की। इसके अलावा, भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और राष्ट्रवादी अपील का प्रभावी ढंग से लाभ उठाया। एक मजबूत नेता के रूप में मोदी की छवि, राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास के भाजपा के आख्यान के साथ मिलकर, शहरी और अर्ध-शहरी मतदाताओं के बीच गूंजती रही, जो स्थानीय मुद्दों से कम और राष्ट्रीय चिंताओं से अधिक प्रभावित थे। दूसरी ओर, कांग्रेस मोदी की अपील का मुकाबला करने के लिए एक समान एकीकृत आख्यान पेश करने में असमर्थ रही। जिन कांग्रेस नेताओं को फील्ड में भेजा गया, उनमें ज्यादातर सिफ़ारसी थे और प्रभावहीन भी,जो कांग्रेस को हार की तरफ खींच ले गए।(लेखक राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार है) ईएमएस / 09 अक्टूबर 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