-अमेरिका स्थापित करना चाहता है विशेष टाइम जोन, चीन भी पीछे नहीं वाशिंगटन (ईएमएस)। पिछले साल अगस्त में भारत ने चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर ऐतिहासिक कदम रखकर अंतरिक्ष अनुसंधान में नया अध्याय शुरू किया था। इसके साथ ही अन्य देशों अमेरिका, चीन, रूस और जापान भी चंद्रमा पर जाने के अपने-अपने मिशन की योजना बना रहे हैं। पृथ्वी पर हम सभी समय को आसानी से समझते हैं, लेकिन चांद पर क्या समय होगा? इसकी हमें जानकारी नहीं होती है। यह ऐसा सवाल है, जो तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है, बल्कि इसे लेकर अमेरिका और चीन में विवाद छिड़ गया है। अमेरिका अपने लिए और अपने स्पेस पार्टनर्स के लिए चंद्रमा पर एक विशेष टाइम जोन स्थापित करना चाहता है। इसके उलट चीन और रूस अमेरिका के नेतृत्व वाली पहल से बाहर हैं। चीन अपने लूनर टाइमिंग और नेविगेशन सिस्टम को विकसित करने का प्रयास कर रहा है। व्हाइट हाउस के निर्देश के मुताबिक नासा एक नए टाइम स्टैंडर्ड, जिसे कोऑर्डिनेटेड लूनर टाइम (एलटीसी) नाम दिया गया है को लाने का नेतृत्व कर रहा है। इसका उद्देश्य चंद्रमा पर खोजबीन को सुरक्षित और टिकाऊ तरीके से आगे बढ़ाना है। अप्रैल में एक रिपोर्ट में कहा गया था कि चंद्रमा पर प्रस्तावित स्टैंडर्ड टाइमिंग को अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्टेमिस समझौते के हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा अपनाया जाएगा। यह अंतरराष्ट्रीय मानक के रूप में काम करने का उद्देश्य रखता है। यह भी कहा गया है कि समय का ज्ञान वैज्ञानिक खोज, आर्थिक विकास और अंतर्राष्ट्रीय मदद के लिए अत्यंत जरुरी है। आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों की संख्या 43 हो गई है, लेकिन इनमें चीन और रूस शामिल नहीं हैं। इसके बजाय चीन और रुस एक समानांतर पहल इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसका लक्ष्य 2035 तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक स्थायी आधार बनाना है। चीन ने 2028 तक चंद्रमा के लिए एक समय क्षेत्र स्थापित करने और कोऑर्डिनेटेड लूनर कम्युनिकेशन और इंटरनेट क्षमता विकसित करने की योजना का ऐलान किया है। इस प्रकार चंद्रमा पर समय की लड़ाई केवल तकनीकी प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि वैश्विक वर्चस्व की एक नई रणनीति बन चुकी है। सिराज/ईएमएस 06 अक्टूबर 2024