वाशिंगटन (ईएमएस)। केंद्र सरकार ने नासा के तीन बड़े अभियानों के लिए हरी झंडी दे दी है। इसमें एक अभियान वीनस (शुक्र) पर जाने के लिए है। दो अन्य अभियान स्पेस स्टेशन बनाने और चंद्रयान-4 को फिर चांद पर भेजने का अभियान है। ठीक चार साल बाद भारत का शुक्रयान इस ग्रह पर रवाना होगा उसकी आर्बिट में पहुंच कर उसपर नजर रखेगा। जानकारियां इकट्ठा करेगा. शुक्र ऐसा रहस्यमयी ग्रह है, जहां ऑक्सीजन तो है लेकिन जीवन नहीं. हालांकि इसके और पृथ्वी के बीच बहुत सी समानताएं हैं। दरअसल शुक्र ग्रह के बारे में जानने में दिलचस्पी पूरी दुनिया को है। 1960 में ये काम शुरू हुआ। अब तक 46 मिशन वहां जा चुके हैं। इसमें अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप शामिल हैं। अब चीन भी वहां जाने की तैयारी कर चुका है और साथ में भारत भी। पिछले 64 सालों में दुनिया की दिलचस्पी शुक्र के लिए क्यों बढ़ी है। शुक्र पृथ्वी का सबसे नजदीकी ग्रह है। इतने सारे वीनस मिशन से ये समझने की कोशिश हो रही है कि शुक्र ग्रह नरक जैसा ग्रह कैसे बन गया जबकि इसमें पृथ्वी की तरह विशेषताएं हैं। ये सौरमंडल का ऐसा ग्रह है जो रहने योग्य हो सकता है1 जहां ऑक्सीजन है और पानी भी जो समुद्र की तरह लहराते हैं। भारत 2028 में इसके आर्बिट में अपना यान भेजेगा। इसके लिए 1,236 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं, जिनमें से 824 करोड़ अंतरिक्ष यान की ओर जाएंगे। इसके जरिए शुक्र के वातावरण, सौर विकिरण और वायु का अध्ययन करेगा। शुक्र ग्रह पर ऐसी बहुत सी जानकारी हैं जो हमें पृथ्वी और ग्रहों को बेहतर तरीके से समझने में मदद कर सकती हैं। शुक्र के लिए एक मिशन पहली बार 2012 में तिरुपति अंतरिक्ष सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया था लेकिन ये आगे नहीं बढ़ पाया। इसको लेकर इसरो का अध्ययन जारी रहा। 2017 में इसरो ने ये तय किया कि वह शुक्र ग्रह के लिए अपना मिशन भेज सकता है. इसके लिए वह अब तैयार है। इसरो का यान शुक्र ग्रह की कक्षा में 55 किलोमीटर से उस पर नजर रखेगा और जानकारियां भी भेजेगा। मंगल और चंद्रमा पर जीवन के लिए स्थितियां अनुकूल नहीं हैं तो वहीं शुक्र पर हालात जीवन को खत्म कर देने वाले हैं। चंद्रमा और मंगल पर उपकरणों के साथ जिंदा रहा जा सकता है, वहां शुक्र ग्रह पर ऐसा करना असंभव है। शुक्र ग्रह पर ऑक्सीजन है तो सही लेकिन उस रूप में नहीं कि उसमें सांस ली जा सके। वैज्ञानिकों ने शुक्र के वायुमंडल में दिन और रात दोनों समय परमाण्विक ऑक्सीजन का पता लगाया है। यह ऑक्सीजन वहां के वायुमंडल में सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों की दो परतों के बीच 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर मिलती है। ऑक्सीजन का निर्माण दिन के समय होता है जब सूर्य की पराबैंगनी किरणें कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड को तोड़ती हैं फिर हवाएं कुछ ऑक्सीजन को रात की ओर ले जाती हैं। इस ऑक्सीजन का तापमान दिन में माइनस 120 डिग्री सेल्सियस से लेकर रात को माइनस 160 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। शुक्र ग्रह पर मौजूद ऑक्सीजन पृथ्वी पर मौजूद उस ऑक्सीजन से अलग है जिसे मनुष्य सांस के जरिए ग्रहण करते हैं, जो दो जुड़े हुए ऑक्सीजन परमाणुओं से बनी होती है। शुक्र ग्रह पर ऑक्सीजन एकल स्वतंत्र रूप से तैरते ऑक्सीजन परमाणुओं से बनी है ये ऑक्सीजन फेफड़ों को खराब कर देती है। वहां का वायुमंडल कार्बनडाइऑक्साइड और सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों से भरपूर है। वायुमंडल में तापमान भी बहुत ज्यादा है। सतह पर वहां तापमान हमेशा 450 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होता है। शुक्र ग्रह के बारे में कहा जाता है कि कभी पृथ्वी और वह दोनों ही एक ही जैसे ग्रह थे लेकिन आज जहां पृथ्वी पर जीवन पनपा हुआ है तो शुक्र एक तरह का नर्क है। वैज्ञानिकों को यह भी मानना है कि । इस लिहाज से शुक का अध्ययन पृथ्वी के पर्यावरण के लिए बहुत जरुरी हो सकता है। सिराज/ईएमएस 26 सितंबर 2024