लेख
21-Sep-2024
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दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी पर लगे, दिल्ली शराब घोटाले के आरोपों और उनके इस्तीफे ने राजनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े कर दिये हैं। केजरीवाल आरोपों को एक राजनीतिक साजिश का हिस्सा बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेल से रिहा होने पर उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। जिस तरह से जमानत की शर्तें कोर्ट ने लगाई थी। उन शर्तों के कारण वह मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी कोई भी निर्णय करने की स्थिति में नहीं थे। नाही वह मुख्यमंत्री सचिवालय में जा पाते। इस स्थिति को देखते हुए, उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जनता के बीच जाने का फैसला किया है। दिल्ली विधानसभा के चुनाव में यदि उन्हें बहुमत से जीत हासिल हो जाती है। तो उनका कहना है कि जनता की न्यायालय ने उन्हें ईमानदार माना है। वह जनता की अदालत से निर्दोष साबित होकर बाहर निकलेंगे। जिस तरह से चुनावी जीत को आरोपों से निर्दोष होने की बात उन्होंने कही है। इसे किस रूप में देखा जाए इसको लेकर अब राजनीतिक हल्कों में एक नई बहस छिड़ गई है। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद, नोटबंदी के फैसले को चुनावी जीत से जोड़ा था। पिछले 10 वर्षों में केंद्र सरकार ने जनता के समर्थन को सबसे ऊपर रखते हुए, बार-बार कहा है। जनता ने उन्हें समर्थन दिया है। उनकी नीतियों को सही माना है। एक तरह से चुनावी जीत को केंद्र सरकार ने अपनी नीतियों की जीत बताया है। भाजपा की केंद्र सरकार और राज्यों की भाजपा सरकार बहुमत के आधार पर अपने हर निर्णय को चुनावी जीत से जोड़कर उसे बेगुनाही का सबूत बताती हैं। चुनावी जीत से किसी भी आरोप को समाप्त नहीं माना जा सकता है। चुनावी जीत का जनता के समर्थन का जुड़ाव हो सकता है। लेकिन चुनाव की जीत न्याय और अदालत के फैसले का विकल्प नहीं हो सकती है। नेता,चाहे वह कितना भी लोकप्रिय क्यों न हो, कानूनी प्रक्रिया से उसे गुजरना ही पड़ेगा। न्यायालय को ही यह अधिकार है, कानून के दायरे में रहते हुए अपने अधिकारों का प्रयोग किया है, या नहीं किया है। कानून के अनुसार अपराध निर्दोष होने का अंतिम फैसला न्यायालय का ही हो सकता है। 1975 में आपातकाल लगाया गया था। आज तक कांग्रेस को आपातकाल का दंस झेलना पड़ रहा है। जबकि लोकसभा और राज्यसभा में आपातकाल को लेकर बिल पास हुआ था। उसके बाद भी कांग्रेस यह कहकर आज भी नहीं बच पाती है, कि संसद ने आपातकाल का बिल पास किया था। निर्वाचित सरकारें बहुमत के आधार पर बहुत सारे निर्णय लेती हैं। जो समय-समय पर गलत भी साबित होते हैं। नोटबंदी के मामले में आज भी विपक्षी दल केंद्र सरकार पर हमलावर होते हैं। नोटबंदी का निर्णय सही था, या गलत यह तो समय बताएगा। नोटबंदी के मामले में यदि कोई गड़बड़ी हुई है, तो उसकी जिम्मेदारी, जिसने गड़बड़ी की है उसी के ऊपर आएगी, वह हमेशा न्यायिक समीक्षा के अधीन रहेगी। इलेक्ट्रॉल बांड वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उसे असवैधानिक बताकर निरस्त किया है। इलेक्ट्रोल बांड के जरिए कोई आर्थिक गड़बड़ी हुई है, तो उसके लिए संबंधित व्यक्ति, पार्टी अथवा जो भी जिम्मेदार होगा। वह न्यायिक समीक्षा के अधीन हमेशा रहेगा। इस मामले का फैसला जब भी करेगी, न्यायपालिका ही करेगी। कोई भी राजनीतिक दल या राजनेता यह कहकर नहीं बच सकता है, कि उसने चुनाव जीत लिया है। इसलिए उसके खिलाफ सारे आरोप खत्म हो गए हैं। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भले दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीत जाएं। न्यायपालिका से ही वह दोषी या निर्दोष साबित होंगे। पिछले एक दशक में जिस तरह से राजनीतिज्ञ अपने-अपने अनुकूल व्याख्या, राजनीतिक दल और राजनेता करने लगे हैं। उनका कोई ओर छोर नहीं है। अरविंद केजरीवाल जिस तरह से अपने आप को ईमानदार साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। वह एक राजनीतिक प्रयास जरूर हो सकता है। संविधान के अनुसार उन्हें क्लीन चिट न्यायपालिका से ही लेनी पड़ेगी। न्यायपालिका यदि उन्हें क्लीन चिट देगी, तभी वह शराब घोटाले के आरोपों से मुक्त हो पाएंगे यही सत्य है। सनत कुमार जैन, 21 सितम्बर, 2024