लेख
19-Sep-2024
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एक समय था जब पत्राचार कुशलक्षेम जानने से लेकर प्रेम और स्नेह को जतलाने के लिए किया जाता था। इससे पहले राजा-महाराजाओं के समय में संधी या युद्ध की धमकी के लिए पत्रों का अदान-प्रदान होता था। खास बात यह है कि तब पत्र जिसे लिखा जाता था वही पत्र का जवाब देता था, भले ही वह पढ़ा-लिखा हो या न हो। अब चूंकि दुनियां अत्याधुनिक दौर में प्रवेश कर चुकी है। अब कागज व कलम-दवात की जगह इंटरनेट के साथ ही कंम्प्यूटर, लेपटॉप व मोबाईल जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से संदेशों का अदान-प्रदान ज्यादा होने लगा है। ऐसे में समय की बचत के साथ ही पत्र सही जगह पहुंचेगा या नहीं इसकी समस्या भी अब जाती रही है। बावजूद इसके राजनीतिक गलियारे में पत्रवार या पत्रों की सियासी जंग जारी है। इस पत्रवार में एक बात जरुर देखने को मिल रही है कि जिसे पत्र लिखा जाता है, वह जवाब दे या न दे, लेकिन दूसरे लोग उसके जवाब में लंबा-चौड़ा पत्र लिखकर सामने वाले को पस्त करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। यकीन नहीं आता तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए पत्र के जवाब में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के पत्र को ही देख लें। वैसे भी भारतीय राजनीति उस दौर में है जहां भाषा और सुचिता का कोई मेल ही नहीं है। जिसके जो मर्जी आता है बोल देता है। इससे लोकतंत्र भी आहत होता है। ऐसी भाषा जो दूसरों को आहत करे, लोगों को मरने-मारने पर उतारु कर दे, इसका अहिंसावादी देश भारत में क्या काम हो सकता है? लेकिन ऐसी भाषा का इस्तेमाल सियासी गलियारे में खूब हो रहा है। जिसे रोकने की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष और विपक्ष के शीर्ष नेतृत्व की है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन देखने में आ रहा है कि इसे रोकना तो दूर बढ़़ाने के प्रयास ज्यादा हो रहे हैं। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जो पत्र लिखा उसमें उन्होंने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को एनडीए नेताओं के द्वारा आतंकवादी कहे जाने पर आपत्ति दर्ज कराते हुए इस तरह के बयानों पर लगाम लगाए जाने की बात कही। पत्र में उन्होंने लिखा कि, मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्यान एनडीए नेताओं द्वारा लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ की गई असभ्य टिप्पणियों की ओर आकर्षित करना चाहता हूं...। मैं आपसे आग्रह करता हूं कि अनुशासन और शिष्टाचार के जरिए ऐसे नेताओं पर लगाम लगाएं...ऐसे बयानों के लिए सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि भारत की राजनीति को पतन की ओर जाने से रोका जा सके। कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने पत्र की भाषा को संयमित रखा। पर इससे क्या, क्योंकि उन नेताओं को बोलने का अवसर तो मिल ही गया, जो हर मुद्दे पर अपनी राय रख कर देश और दुनियां का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते हैं, ताकि उनकी राजनीति किसी भी कीमत पर चमकती रहे। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे के पत्र का जवाब प्रधानमंत्री ने फिलहाल तो नहीं दिया, लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक लंबा पत्र बतौर जवाब लिखा और सख्त लहजे में बतला दिया कि कांग्रेस और उसके नेता यथार्थ और सत्य से कोसों दूर हैं। पत्र के जवाब में सवाल करते हुए भाजपा अध्यक्ष ने पूछा कि क्या आप राहुल गांधी की करतूत भूल गए? राहुल गांधी जाति जनगणना और आरक्षण के नाम पर भड़का रहे हैं। यही नहीं राहुल गांधी ने कई बार पीएम मोदी का अपमान किया। सोनिया गांधी ने तो पीएम को मौत का सौदागर कहा था। नड्डा ने पत्र में कहा है कि कांग्रेस ने कई बार पीएम का अपमान किया है। कांग्रेस ने देश को शर्मसार किया है। बात इतनी सी है कि भूतपूर्व नेताओं और वर्तमान नेताओं को अपशब्द कहने से बचा जाना चाहिए, फिर चाहे वह सत्ता पक्ष हो या विपक्ष। पर सभी जानते हैं कि ऐसा करना मुमकिन नहीं है। दरअसल इस कलयुग की राजनीति रसातल की ओर जा रही है। जहां चुनाव जीतना मुख्य लक्ष्य है। इसके लिए तमाम लोकतांत्रिक मूल्य और लाज-शर्म ताक पर रख मैदान मार लेना ही वीरता की निशानी मानी जाती है। आज की राजनीति साम, दाम, दंड-भेद से आगे बढ़ चुकी है, जहां सब जायज है, बशर्ते जीत तय हो। ऐसे में पत्रवार होना कोई बड़ी बात तो नहीं है। बावजूद इसके कहना तो यही है कि पत्रवार नहीं बल्कि स्वस्थ पत्राचार होना चाहिए, जिससे देश की अन्य मूल-भूत और संकट पैदा करने वाली बड़ी समस्याओं का निदान निकल सके। भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए समृद्धि आवश्यक है और यह तभी संभव है, जबकि अनेकता में एकता फलिभूत हो। जिस प्रकार बड़ी लाइन को मिटाकर छोटी लाइन को बड़ा नहीं किया जा सकता, ठीक उसी प्रकार किसी के चरित्र का हनन करके अपने दागदार दामन को उजला नहीं किया जा सकता है। यह समझने वाली बात है कि जब दूसरे पर आप एक अंगुली उठाते हैं तो बाकी उंगलियां आपकी अपनी ओर हो जाती हैं। मतलब साफ है कि ऐसे तमाम बयानों और भाषणों पर रोक लगना चाहिए जिससे किसी का चिरहरण होता हो और कब्र खोदने की बातें की जाती हों, क्योंकि हिंसा तो हिंसा होती है, फिर चाहे वह शारीरिक तौर पर की गई हो या जुबानी या पत्र लिखकर की जा रही हो। लोकतंत्र में इसे किंचित भी प्रवेश नहीं मिलना चाहिए। अंतत: इस पत्रवार को यहीं रोकें और पत्राचार से समस्या का समाधान निकालें, जिसकी देश को दरकार है। ईएमएस / 19 सितम्बर 24