लेख
18-Sep-2024
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श्री गणेश जी निराकार ब्रह्म हैं जो भक्त के उपकार हेतु एक अलौकिक आकार में स्थापित हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, वह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं।गणपति विसर्जन, गणेश चतुर्थी के समापन का प्रतीक है, जब भक्त अपने घरों और सार्वजनिक पंडालों में स्थापित भगवान गणेश की मूर्तियों का विसर्जन करते हैं। यह समारोह गणेश चतुर्थी के अंतिम दिन, जिसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है, बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। विसर्जन का अर्थ है मूर्ति को जल में प्रवाहित करना, जो समुद्र, नदी, तालाब या अन्य जल निकायों में किया जाता है। इस दिन लोग गाजे-बाजे के साथ गणपति बप्पा की मूर्तियों को विसर्जन स्थल तक ले जाते हैं। इसके दौरान गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ के जयकारे गूंजते रहते हैं। विसर्जन से पहले गणेश जी की आरती की जाती है और उनसे अगले वर्ष पुनः लौटने का आह्वान किया जाता है। यह परंपरा गणेश जी के प्रतीकात्मक रूप से अपने लोक में लौटने और सभी भक्तों की बाधाओं को दूर करने का प्रतीक है।गणेशोत्सव के अंतिम दिन, भक्तों ने भावुकता और श्रद्धा के साथ गणपति बप्पा को विदाई दी। अनंत चतुर्दशी पर, ढोल-नगाड़ों, गानों और नाच-गाने के साथ बप्पा की मूर्तियों का विसर्जन किया गया।दस दिनों तक यह उत्सव पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, और अनंत चतुर्दशी के दिन इसका समापन गणेश विसर्जन के साथ होता है यह दिन बहुत ही भावुक और महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि भक्त गणपति बप्पा को विदा करते हैं और उनसे अगले वर्ष जल्दी लौटने की प्रार्थना करते हैंहर कोई बप्पा की विदाई के समय “गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” के जयकारे लगाता है, जिससे वातावरण भक्ति और उमंग से भर जाता है पुराणों में उनके 64 अवतारों का वणर्न है। सतयुग में कश्यप व अदिति के यहां महोत्कट विनायक नाम से जन्म लेकर देवांतक और नरांतक का वध किया। त्रेतायुग में उन्होंने उमा के गर्भ जन्म लिया और उनका नाम गुणेश रखा गया। सिंधु नामक दैत्य का विनाश करने के बाद वे मयुरेश्वर नाम से विख्‍यात हुए। द्वापर में माता पार्वती के यहां पुन: जन्म लिया और वे गणेश कहलाए। ऋषि पराशर ने उनका पालन पोषण किया और उन्होंने वेदव्यास के विनय करने पर सशर्त महाभारत लिखी। उन्हें गजानन इसलिए कहा गया कि उनके सिर को भगवान शंकर ने काट दिया था। बाद में उनके धड़ पर हाथी का सिर लगा कर उन्हें पुन: जीवित किया गया। अग्रपूजक कैसे बने : एक बार देवताओं में धरती की परिक्रमा की प्रतियोगिता हुई जिसमें जो सबसे पहले परिक्रमा करके आ जाता उसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता। प्रतियोगिता प्रारंभ हुई परंतु गणेश जी का वाहन तो मूषक था तब उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और उन्होंने अपने माता पिता शिव एवं पार्वती की ही परिक्रमा कर ली। ऐसा करके उन्होंने संपूर्ण ब्रह्माण्ड की ही परिक्रमा कर ली। तब सभी देवों की सर्वसम्मति और ब्रह्माजी की अनुशंसा से उन्हें अग्रपूजक माना गया। इसके पीछे और भी कथाएं हैं। पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं।गणेशजी की पसंद का प्रिय भोग मोदक लड्डू, प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल, प्रिय वस्तु दुर्वा (दूब), प्रिय वृक्ष शमी-पत्र, केल, केला आदि हैं। केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती की जाती है। उनको मोदक का लड्डू अर्पित किया जाता है। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।गणेश चतुर्थी के मौके पर भक्त अपने घर पर बप्पा को लेकर आते हैं। उनकी खूब सेवा करते हैं, जिससे उनका आशीर्वाद और प्यार परिवार पर बना रहे। उसके बाद उनको बहुत ही भारी मन से अलविदा कहना का समय आता है। नदियों या पानी वाली जगह पर प्रतिमा का पूजा-पाठ के साथ विसर्जन होता है। इस दौरान भक्त ढोल-नगाड़ों के साथ उनको अलविदा कहते हैं भगवान गणेश जी का वाहन मूषक है. मूषक बनने की वजह से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं: एक कथा के मुताबिक, गजमुखासुर नाम के असुर से युद्ध के दौरान गणेश जी ने अपने दांत से उस पर वार किया था. गजमुखासुर घबराकर मूषक बनकर भाग गया. गणेश जी ने उसे अपने पाश में बांध लिया और उसे क्षमा मांगने के बाद अपना वाहन बना लिया गणेशजी जल तत्व के अधिपति, बुधवार और चतुर्थी के स्वामी और केतु एवं बुध के ग्रहाधिपति गणेश जी के प्रभु अस्त्र पाश और अंकुश है। वे मूषक वाहन पर सवार रहते हैं। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं।उनकी भुजाएं 6 हैं और रंग श्वेत। द्वापरयुग में उनका वाहन मूषक है और उनकी भुजाएं 4 हैं। इस युग में वे गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं और उनका वर्ण लाल है। कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है और वर्ण धूम्रवर्ण है। इनकी 2 भुजाएं हैं और इस युग में उनका नाम धूम्रकेतु है।इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई इस शानदार मौके का हिस्सा नहीं बन पाता है। ऐसे में आप अपने अंदर हीं गणपति का ध्यान कर नम आँखों से विदाई दें उनका आशीर्वाद ग्रहण करें.आज विसर्जन में गणपति को विदाई दे रहें हैं आँखे नम हो गई लेकिन विश्वास कायम है कि अगले वर्ष गणपति जल्द आएंगे। ईएमएस/18/09/2024