-चुनौतियों से लडने की बजाय मौत को गले लगा लेते हैं लोग नई दिल्ली (ईएमएस)। क्या आपको मालूम है, औसतन एक लाख पुरुषों में से 12 पुरुष आत्महत्या करते हैं तो वहीं सालाना एक लाख में से 5 महिलाएं आत्महत्या करती हैं। इन आंकडों से पता चलता है कि आत्महत्या के मामले में महिलाओं से पुरुष आगे होते हैं। आत्महत्या के कई सामाजिक, मानसिक और आर्थिक कारण हैं। आत्महत्या एक गंभीर समस्या है, और इसे रोकने के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना, सामाजिक मान्यताओं को बदलना, और उचित समर्थन प्रदान करना बहुत जरूरी है। समाज में अक्सर पुरुषों पर परिवार के आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक ज़िम्मेदारियों का अधिक दबाव होता है। उन्हें पारंपरिक रूप से कमाने वाला और समस्याओं का समाधान करने वाला माना जाता है। यह अपेक्षाएं उन्हें मानसिक तनाव में डाल देती हैं, क्योंकि वे अपनी समस्याओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते। पुरुषों से समाज में यह अपेक्षा की जाती है कि वे मजबूत बने रहें और भावनात्मक रूप से कमजोर न दिखें। इससे वे अपनी भावनाओं को दबाने लगते हैं और मानसिक समस्याओं को साझा करने में हिचकिचाते हैं। परिणामस्वरूप, मानसिक बीमारियों जैसे डिप्रेशन और चिंता का समय पर इलाज नहीं हो पाता। कई बार पुरुष मानसिक स्वास्थ्य के लिए सहायता लेने से कतराते हैं, क्योंकि समाज में इसे कमजोरी के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की जानकारी या उनके प्रति जागरूकता की कमी भी इस समस्या को बढ़ा देती है। बेरोजगारी, आर्थिक समस्याएं, और करियर में असफलता पुरुषों पर गहरा असर डालती है। आर्थिक रूप से कमजोर होने का डर, करियर की अनिश्चितता और बढ़ती जिम्मेदारियों का दबाव आत्महत्या के मामलों में योगदान कर सकता है। जब पुरुष अपने जीवन में व्यक्तिगत या पेशेवर विफलताएं झेलते हैं, तो उन्हें आत्मसम्मान में गिरावट महसूस होती है। यह विफलता मानसिक तनाव और आत्महत्या के विचारों को जन्म दे सकती है। कई पुरुष शराब, धूम्रपान, या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं, जो मानसिक स्वास्थ्य को और अधिक खराब कर देता है। नशे की लत अक्सर आत्महत्या के विचारों को प्रेरित करती है। वैवाहिक समस्याएं, तलाक, या रिश्तों में टूटन भी पुरुषों में आत्महत्या के विचारों का कारण हो सकता है। पुरुष अक्सर इन रिश्तों की समस्याओं से जुड़े मानसिक और भावनात्मक तनाव का सामना अकेले करते हैं, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। यह जरूरी है कि पुरुषों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। समाज को यह समझना चाहिए कि भावनाओं को साझा करना कमजोरी नहीं, बल्कि मानसिक मजबूती का प्रतीक है। परिवार, दोस्तों और सहयोगियों को पुरुषों को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर बात करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलानी होगी। पुरुषों को भी थेरेपी, काउंसलिंग, या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कार्यालयों और संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच को बढ़ाना भी महत्वपूर्ण है। समाज में यह धारणा बदलनी होगी कि पुरुषों को हमेशा मजबूत बने रहना चाहिए। उन्हें भी अपनी कमजोरियों और भावनाओं को स्वीकार करने का अधिकार है। लिंग-आधारित रूढ़ियों को खत्म करना और पुरुषों को बिना किसी दबाव के अपने जीवन को जीने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। सुसाइड के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए समाज को पुरुषों के प्रति अपनी सोच और अपेक्षाओं में बदलाव लाना होगा। सुदामा/ईएमएस 13 सितंबर 2024