मणिपुर में फिर भड़की हिंसा में 06 लोगों की मौत हो गई। वर्तमान में भड़की हिंसा ने राज्य की स्थिति को और गंभीर बना दिया है। बिष्णुपुर जिले में हुए ड्रोन और रॉकेट के हमले ने मणिपुर में दोनों समुदायों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है। इस प्रकार की घटनाएँ राज्य की आंतरिक एवं बाहय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गई है। मणिपुर की घटनाएं मानवता के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाती हैं। राज्य में मेतेई और कुकी समुदाय के बीच टकराव का लंबा सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। स्थानीय निवासियों के बीच अविश्वास और विभाजन की गहरी खाई ने राज्य में शांति की संभावनाओं को एक तरह से खत्म कर दिया है। दोनों ही समुदाय के बीच में विश्वास पैदा नहीं हो पा रहा है। मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। सरकार को समझना होगा, इस समस्या का समाधान सैन्य शक्ति से नहीं वरन दोनों समुदायों के बीच विश्वास और भाईचारा बढ़ाकर ही हो सकता है। इसके लिए राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर ठोस कदम उठाने होंगे। ड्रोन जैसे आधुनिक हथियारों का उपयोग हिंसा में किया जा रहा है। जो चिंताजनक है। घातक हथियारों का इस्तेमाल नागरिक इलाकों में एक दूसरे समुदाय पर डर का माहौल बनाने के लिए किया जा रहा है। इससे स्थानीय लोग भयभीत हैं। उनका जीवन संकट में है। हजारों लोग हिंसा से प्रभावित होकर पिछले एक साल से शिवरों में रह रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं भूख और कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। सालभर से स्कूल कॉलेज बंद हैं। एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय के इलाकों में नहीं जा सकते हैं। अस्पतालों मे लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। मणिपुर में जो अस्पताल हैं, उस अस्पताल में दूसरे समुदाय के डॉक्टर नर्सिंग स्टाफ इत्यादि सेवा के लिए नहीं जाते हैं। जिसके कारण अस्पतालों में इलाज नहीं हो रहा है। यही हालत लगभग-लगभग स्थानीय पुलिस की है। सुप्रीम कोर्ट ने एक साल पहले एसआईटी बनाई थी। सीबीआई जांच कर रही है। मुख्यमंत्री को अभी तक नहीं हटाया गया है। मणिपुर की राज्यपाल अनसुईया उइके का विश्वास दोनों समुदाय करते हैं, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा उन्हें शांति स्थापित करने की कोई भूमिका नहीं दी गई है। मुख्यमंत्री के ऊपर वहां की जनता का विश्वास नहीं है। इस झगड़े की जड़ सही मायने में वही हैं। रही सही कसर हिंदू संगठन व संघ के लोग पूरी कर देते हैं जो वहां उत्तेजना फैलाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। एक वर्ग विशेष को शासन का संरक्षण प्राप्त है। केंद्र सरकार को इस मामले में कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट भी आंख बंद करके नहीं बैठी रह सकती है। वर्तमान हिंसक घटनाएँ ना केवल मणिपुर की सुरक्षा बरन देश की बाहय सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती है। राज्य का आर्थिक और सामाजिक विकास भी बाधित है। इस प्रकार की हिंसा से मणिपुर राज्य के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों में भी अस्थिरता का माहौल बन गया है। जिससे राजनीतिक, सामाजिक, सुरक्षा, शिक्षा कानून व्यवस्था और विकास के अन्य पहलुओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। केंद्र सरकार मणिपुर की स्थिति को काबू में नहीं कर पा रही है। ऐसी स्थिति में न्याय व्यवस्था और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण में सुप्रीम कोर्ट को भी अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। सरकार को चाहिए वह जल्द से जल्द सभी पक्षों को एक साथ बैठाकर बातचीत का रास्ता निकाले। सभी राजनीतिक दलों और सभी सामाजिक संगठनों का सहयोग लिया जाए। दोनों समुदायों के बीच संवाद स्थापित हो। मणिपुर के नागरिकों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए समाधान की दिशा में प्रयास किए जाएं। हिंसा फैलाने वाले तत्वों पर बिना किसी भेदभाव के कड़ी कार्रवाई की जाये। ताकि राज्य में शांति और कानून व्यवस्था का राज स्थापित हो। मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए सभी संबंधित पक्षों को आगे आना होगा। संवाद और सामूहिक प्रयासों से ही राज्य को हिंसा से मुक्त किया जा सकता है। सरकार और प्रशासन में आमूल-चूल परिवर्तन के बाद ही मणिपुर में शांति और सुरक्षा की स्थिति निर्मित हो सकती है। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाकर केंद्र सरकार राज्यपाल के माध्यम से मणिपुर की जनता को भरोसा दिलाए। भरोसे के बिना मणिपुर में शांति स्थापित होना संभव ही नहीं है। ईएमएस / 08 सितम्बर 24