लेख
07-Sep-2024
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विगत दिनों सोशल साइट्स पर महापर्व पर्यूषण के क्षमापर्व पर कहें जाने वाले जैन दर्शन के दो शब्दों को लेकर गंभीर विचार विमर्श पढ़ने में आया। ये दो शब्द जिन पर विद्वतजनों की चर्चा केन्द्रित थी है मिच्छा मि दुक्कडं और खमत खामणा । क्या फर्क है इन दोनों में और इनके उपयोग कब और किस भावना से किए जा रहे हैं और किए जाने चाहिए इसी पर सभी अपनी राय प्रकट कर रहे थे। ... कुछ का मत था कि क्षमा पर्व पर खमत खामणा की जगह जो मिच्छा मि दुक्कड़म् का प्रयोग हो रहा है वह ठीक नहीं है.... तो कुछ ने इसके प्रयोग का कारण लिक से हटकर कुछ करने की प्रवृत्ति बताते इसके चलन में आने के साथ, इसका न समर्थन किया न विरोध।... शब्दों में निहित भावाभिव्यक्ति को परिभाषित करते बताया कि मिच्छामी दुक्कडं का अर्थ है- मेरा पाप निष्फल हो।... जबकि खमत खमणा का अर्थ है - मैं आपको खमाता हूँ अर्थात आपसे क्षमा चाहता हूँ । आजकल क्षमा पर्व के अवसर पर खमत खामणा की जगह मिच्छामि दुक्कड़म् का प्रयोग जो हो रहा है इसे उन्होंने शास्त्र विरुद्ध कहते अज्ञान माना तर्क यही दिया कि लीक से हटकर कुछ करने की इच्छा है, और जो कुछ भी नया चलन में आता दिखे उसकी नकल करने की प्रवृत्ति ही है इसके प्रयोग के पीछे।.... हालांकि मिच्छा मि दुक्कड़म् और खमत खामणा, दोनों जैन दर्शन के ही शब्द हैं, लेकिन दोनों समान अर्थ वाले पर्यायवाची वाक्यांश नहीं हैं। दोनों के अर्थ बिल्कुल अलग हैं।... मिच्छा मि दुक्कड़म् का अर्थ है - मेरा यह पाप, दुष्कृत्य मिथ्या हो, निष्फल हो । इसका प्रयोग तभी होता है, जब आपको पता हो कि आप से क्या भूल हुई है। उस पाप भूल को निष्फल करने के लिए मिच्छामि दुक्कड़म् का प्रयोग होता है। इसमें ना तो क्षमा मांगी जा रही है, ना ही क्षमा दी जा रही है। मात्र अपने पाप अथवा दुष्कृत्य को निष्फल करने की कामना और पश्चाताप भाव लिए होता है मिच्छा मि दुक्कड़म्। ....यह कहीं भी क्षमा मांगने के मूल भाव के आसपास भी नहीं है।.... जबकि खमत खामणा का अर्थ क्षमा मांगना भी है... और क्षमा देना भी है।... खमत खामणा में दोनों क्रियाएं एक साथ ही हो रही हैं।... खमत खामणा में सरल मन से अपनी ज्ञात और अज्ञात भूलों, दुष्प्रवृत्तियों और दुष्कृत्यों के लिए क्षमा याचना भी है, और यदि किसी की किसी बात से ठेस लगी हो, तो उसे भुलाकर, उसके बिना मांगे क्षमा कर देने का भाव भी है।...मिच्छा मि दुक्कड़म् में इसका अभाव है। अंत में जैन दर्शन के अनुरूप सही शब्दावली का प्रयोग करने की अपील और आकर्षक शब्दों के जाल में आकर भेड़ चाल नहीं चलने के निवेदन के साथ चर्चा को विराम दिया गया।... तो मैं भी इस प्रसंग के साथ महापर्व पर्यूषण के क्षमा पर्व पर सभी से खमत खामणा के साथ अपनी लेखनी को विराम देता हूं। (लेखक- आनन्द पुरोहित/ ईएमएस)