लेख
07-Sep-2024
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*इतिहास गवाह है, जंग में जोश से ज्यादा संगठात्मक अनुभवी अधिनायक युद्ध जितवाते हैं* *आखिर नर्सिंग घोटाले को कांग्रेस ने क्यों दबा दिया, जबकि 2028 में मध्यप्रदेश सरकार की चाबी है नर्सिंग घोटाला* *मध्यप्रदेश कांग्रेस में संगठन को खड़ा करने के लिए कमलनाथ जैसे अनुभवी नेताओं की है नितांत आवश्यकता अनुभवी नेताओं को किनारे करने का परिणाम भुगत रही कांग्रेस* *अनुभवहीन नेताओं के हाथों में कमान, पार्टी का भविष्य संकट में डाल रहा आलाकमान * आज से कोई 4 साल बाद प्रदेश में चुनाव होने हैं, पर प्रदेश में कांग्रेस की हालत अभी से पतली नजर आ रही है। इसका एक सीधा-सीधा कारण है तजुर्बेकार कांग्रेसी नेताओं की कमी होना। ऐसे अनुभवी और प्रभावी नेता जो संगठन को बुन सकें, पार्टी को खड़ा कर सकें। मुझे अच्छे से याद है कांग्रेस का संगठन 2013 के चुनाव के बाद ऐसे ही निर्जीव हो गया था, उस समय सरकार के मुखिया शिवराज के खिलाफ व्यापमं जैसा बड़ा मुद्दा होने के बावजूद पार्टी माहौल नहीं खड़ा कर पा रही थी। इसी बीच आलाकमान ने कमलनाथ को प्रदेश का सरदार बना दिया और बस अपने अनुभवी संगठात्मक कौशल के दम पर अप्रासंगिक लगने वाले मुद्दे असरदार लगने लगे। अनुभव का एक उदाहरण मराठा और मुगल युद्ध था, जैसे औरंगजेब के पास मराठा फौज से कई गुना शक्तिशाली फौज थी पर मराठा सरदारों के अनुभव ने उस शक्तिशाली फौज को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। आज भी वही दौर कांग्रेस का लौट आया है। जहां उनके युवा नेता प्रदर्शन तो कर रहे हैं, पर अपनी अनुभवहीनता के कारण सरकार का बाल भी बांका नहीं कर पा रहे हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य लग रहा है जिस जोश के साथ इन्होंने नर्सिंग घोटाला विधानसभा से सड़क तक उठाया, अब उसमें खामोशी से दबा दिया गया है। क्या परदे के पीछे नर्सिंग घोटाले के दागी मंत्री के साथ कोई डील हो गई है, क्योंकि कांग्रेस के पदों में बैठे नेता के काफी लोग मंत्री के भी हितैषी हैं। खैर समय अब आ गया है जब आलाकमान मध्य प्रदेश के बारे में सोचे। यह सोचे कि क्या कारण है कि जब कांग्रेस पार्टी पूरे प्रदेश की सीटें लगभग 50000 वोटों के ऊपर से ही हारी। पार्टी को तुरंत रणनीतिक, संगठन को खड़ा करने वाले कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे अनुभवी नेता चाहिए। वैसे भी काठ की हांडी जैसी लाडली बहना योजना बार-बार नहीं चढ़ती। मध्यप्रदेश कांग्रेस में इन दिनों संगाठनात्मक नियुक्तियों को लेकर चर्चाएं तेज हैं। एक तरफ जहां प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी अपनी इच्छानुसार लोगों की नियुक्तियां करने में जुटे हुए हैँ। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में उच्च स्तरीय पदों पर नियुक्तियों को लेकर आवश्यकता से अधिक पटवारी पर भरोसा जता रहा है। पटवारी और आलाकमान के आदेश के बाद कांग्रेस पार्टी के नेताओं में मनभेद की स्थिति बनती दिख रही है। अगर समय रहते पार्टी आलाकमान ने नेताओं के बीच पनप रहे इस मनभेद को समाप्त नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब मध्यप्रदेश कांग्रेस का अस्तित्व प्रदेश से पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस आलाकमान इन सभी संगठात्मक नियुक्तियों में एक बार फिर युवाओं पर भरोसा जताने जा रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो युवा कंधों पर संगठन की इतनी बड़ी जिम्मेदारी देकर एक बार फिर आलाकमान गलत फैसला लेने जा रहा है। पहले ही प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर अनुभवहीन नेताओं को कमान सौंपकर पार्टी का अस्तित्व खतरे में डाल चुकी कांग्रेस पार्टी के दिग्गज अब एक फिर ऐसा कदम उठाने जा रहे हैं यह एक बड़ा चिंता का विषय है। *सिर्फ आंदोलन करने से नेता नहीं बनते* पार्टी आलाकमान को यह बात समझना होगा कि हर लड़ाई आंदोलन नामक हथियार से नहीं जीती जाती। आलाकमान ने जिन आंदोलन करने वाले नेताओं पर भरोसा जताते हुए प्रदेश की कमान उनके हाथ में सौंपी है वही नेता अब पार्टी की प्रदेश में लुटिया डुबोने में लगे हुए हैं। किसी ने सही कहा है कि हर लड़ाई को हथियार से नहीं जीता जाता है कुछ लड़ाईयां ऐसी भी होती हैं जहां आपको अनुभव की आवश्यकता होती है। लेकिन प्रदेश कांग्रेस के नेताओं को अगर हम देंखे तो सभी अनुभवहीन नजर आते हैं। जो सिर्फ आंदोलन, धरना प्रदर्शन को ही राजनीति करना समझते हैं और पिछले छह महीने से यही करते नजर आ रहे है। यही कारण है कि प्रदेश में कांग्रेस की सक्रियता अब ना के बराबर समझ आ रही है। ऐसे नेता आंदोलन करते हैं और मौका देखकर हाथ मिला लेते हैं। *अनुभवी राजनेताओं को करना होगा एकजुट* पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी और राहुल गांधी को मध्यप्रदेश के सियासी बिसात को बेहतर ढंग से समझकर नये सिरे से अपने नेताओं का चयन करना होगा। इसमें एक तरफ जहां युवाओं की टीम हो वहीं, दूसरी तरफ अनुभवी राजनेताओं की। क्योंकि अनुभवी राजनेताओं के होने का ही कारण है कि कांग्रेस ने देश में 60 साल तक राज किया। लेकिन कपिल सिब्बल, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, प्रणव मुखर्जी, मनीष तिवारी ऐसे कई वरिष्ठ नेता हैं जिन्हें किनारे कर पार्टी रसातल में जाती हुई प्रतीत हो रही है। इसका परिणाम हम सभी के सामने हैं कि मध्यप्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की लुटिया डूब गई। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में है। इसके अलावा दिल्ली में भी पार्टी लगभग खत्म होने की कगार पर पहुंच गई है। इन सभी अनुभवों पर दोबारा से मंथन करके आलाकमान को निर्णय लेने की आवश्यकता है। प्रदेश में गठित हुए नर्सिंग घोटाला कांग्रेस के लिए सत्ता सीढ़ी जैसा था, पर शायद इस मुद्दे को प्रदेश आलाकमान ने बेच डाला। *सूत्रों के मुताबिक मंत्री विश्वास सारंग को अभयदान के पीछे क्या हुआ है बड़ा सौदा* अनुभवहीन होने का सबसे बड़ा उदाहरण है कि प्रदेश भाजपा के मंत्री विश्वास सारंग द्वारा किये गये नर्सिंग घोटाले में विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी कुछ खास विरोध नहीं कर पाई। बल्कि अगर यही कोई अनुभवी नेता होते तो वे योजनाबद्ध ढंग से इस पूरे मसले को विधानसभा पटल पर लाते और आरोपी मंत्री को पद से इस्तीफा दिलवाकर ही दम लेते। लेकिन न जाने अचानक बीच में ऐसा क्या हुआ जिससे पटवारी एकदम नर्सिंग घोटाले पर चर्चा करना ही बंद कर दिये। *कांग्रेस का गुटबाजी से रहा है गहरा नाता, प्रदेश कांग्रेस ने 2024 लोकसभा में छिंदवाड़ा में दिया था भाजपा का साथ* मध्य प्रदेश में कांग्रेस और गुटबाजी का गहरा नाता हो चला है। दोनों एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं। लोकसभा में एकमात्र जीत प्राप्त करने योग्य छिंदवाड़ा सीट को प्रदेश कांग्रेस ने हरवाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। पर प्रदेश कांग्रेस ने छिंदवाड़ा में भाजपा के लिए काम किया और कांग्रेस को ही हरवा दिया गया था। यह बात चुनाव में होने वाले टिकट वितरण से लेकर जिम्मेदारियां सौंपे जाने तक में नजर आती है। इसका ताजा उदाहरण प्रदेश कार्यकारिणी है। प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाले जीतू पटवारी को लगभग 8 माह हो गए हैं, मगर अब तक कार्यकारिणी का गठन नहीं हो पाया है। राज्य में किसी दौर में कांग्रेस सत्ता में थी, संगठन भी मजबूत हुआ करता था, मगर वर्ष 2003 के बाद ऐसी स्थितियां बनी कि कांग्रेस लगातार कमजोर होती गई। *2023 में कांग्रेस पार्टी नहीं हारी थी, बल्कि लाडली बहना योजना जीती थी* पार्टी विधानसभा के लगातार तीन चुनाव हार गई। लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अन्य दलों के सहयोग से सत्ता हासिल की। पार्टी को सत्ता जरूर मिल गई, मगर गुटबाजी के रोग ने उसे ज्यादा दिन सत्ता हाथ में नहीं रहने दिया। 15 महीने ही कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने काम किया। 2028 का चुनाव कांग्रेस जीत सकती है बशर्ते उनके पास अनुभवी सरदार हो जैसे मराठा-औरंगजेब के युद्ध के समय मराठा फौज के पास थे। पार्टी ने दिसंबर 2023 विधानसभा में हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष की कमान जीतू पटवारी को सौंपी। जिसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा, जहां कांग्रेस पार्टी आजादी के बाद पहली बार एक भी सीट नहीं ला पाई। *पार्टी की गुटबाजी कार्यकारिणी गठन में बाधक* नए प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी के सक्रिय नेताओं को जिम्मेदारी का इंतजार है, मगर कांग्रेस का फिर वही गुटबाजी का रोग नई कार्यकारिणी के गठन में बाधक बना हुआ है। मीडिया विभाग के अलावा कुछ नेताओं के पास जिम्मेदारी है, मगर ज्यादातर पद अब भी खाली हैं और दावेदार जोर आजमाइश कर रहे हैं, साथ में जिम्मेदारी का इंतजार भी। पार्टी लगातार सत्ता के खिलाफ आंदोलन, धरना, प्रदर्शन कर रही है, मगर वैसी ताकत दिखाने में असफल है जो पार्टी के नेता और कार्यकर्ता करते हैं। *बिना पद के नेताओं की सक्रियता में कमी* कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राजनीति में कोई भी व्यक्ति अपने रुतबे को बढ़ाने के लिए आता है और यह तभी संभव है जब उसे कोई पद हासिल हो। संबंधित नेता के पास अगर कोई पद नहीं है तो वह न तो सक्रिय रहता है और न ही कार्यकर्ताओं के बीच उसकी पकड़ होती है। इसका असर पार्टी की गतिविधियों पर पड़ता है और राज्य में यही हो रहा है। यह बात अलग है कि कई बड़े नेता या तो आज सक्रिय नहीं हैं या पार्टी छोड़ चुके हैं। उसके बावजूद अंदर खाने की खींचतान कम नहीं हो रही है। उसी का नतीजा है कि आज जीतू पटवारी में इतनी योग्यता नहीं है कि वह अपनी टीम को बना सकें। *उज्जैन और छतरपुर मामले पर कमलनाथ ने जताई चिंता, सरकार को कठघरे में खड़ा किया* उज्जैन और छतरपुर के मामले पर पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सरकार ने चिंता जाहिर करते हुए सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। कमलनाथ ने कहा यह तो एक उज्जैन का मामला है पूरे मध्य प्रदेश में महिलाओं के मामले सामने आ रहे हैं। मध्य प्रदेश की कानून व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प हो चुकी है और आज जनता इसकी पूरी गवाह है। कमलनाथ ने कहा कि लूट और रेप के मामले पूरे प्रदेश में हर जगह से सामने आ रहे हैं। यह घटनाएं शर्मसार करने वाली हैं। लेखिका : विजया पाठक