शक तथा संवत्सर का प्रायः समान अर्थ है, किन्तु थोड़ा अन्तर है। चान्द्र तिथि के अनुसार पर्व होते हैं (संक्रान्ति के अतिरिक्त) क्योंकि चन्द्र मन का कारक है-चन्द्रमा मनसो जातः (पुरुष सूक्त)। किन्तु तिथि क्रमागत दिन में नहीं होती है, अतः क्रमागत दिन की गणना के लिए एक अलग व्यवस्था करनी पड़ती है, जिसे शक कहते हैं। एक ही लेखक ने गणना के लिए शक तथा पर्व निर्णय के लिए संवत्सर का प्रयोग किया है। अतः शक-संवत्सर शब्द का कोई अर्थ नहीं है। शक या संवत् कोई भी आरम्भ करने वाले को शक-कर्त्ता कहा गया है। शक वर्ष का शक जातियों से कोई सम्बन्ध नहीं है। मध्य एशिया, दक्षिण तथा पूर्व यूरोप की बिखरी जातियों को शक कहते थे। ज्योतिर्विदाभरण में रोम के राजा को भी शक कहा है। अल बिरुनी के अनुसार (Chronology of Ancient Nations-translated by Sachau) किसी भी शक राजा ने अपना कैलेण्डर आरम्भ नहीं किया था। वे ईरान या सुमेरिया का कैलेण्डर मानते थे। यदि भारत के पश्चिमोत्तर के शक अपना कैलेण्डर चलाते तो शकारि विक्रमादित्य के काल में उनका कैलेण्डर नहीं चलता। विक्रमादित्य ने अपना स्वयं का कैलेण्डर आरम्भ किया जो आज तक चल रहा है। उनके प्रपौत्र शालिवाहन का शक गणना के लिए व्यवहार होता है, जैसे हेमांगद ठक्कुर की ग्रहण-माला में। केवल पश्चिमोत्तर भारत के बदले कम्बोडिया तथा फिलीपीन के अभिलेखों में भी शालिवाहन शक का प्रयोग है (फिलीपीन का लुगुना अभिलेख)। वहां तक विक्रमादित्य का परोक्ष शासन या प्रभाव का यह प्रमाण है। शक जातियों का क्षेत्र जम्बू द्वीप का केन्द्र तथा प्लक्ष द्वीप का दक्षिण भाग था। किन्तु शक द्वीप आस्ट्रेलिया था। एक का चिह्न कुश (1) है। यह दो प्रकार से शक्तिशाली हो कर शक होता है-बड़े कुश या स्तम्भ आकार का वृक्ष, या कुशों का गट्ठर। मानसिक रूप से दिनों का समूह या अहर्गण कुश का गट्ठर है जिसे शक कहते हैं। इस अर्थ के कारण कई इतिहासकारों ने लिखा है कि सुमेरिया, मिस्र तथा मेक्सिको के मय ५,००० वर्षों की गणना के लिए प्रतिदिन १-१ कुश जोड़ते थे। यह व्यवस्था एक वर्ष भी चलाना कठिन है, कुश नष्ट हो जायेगा। ५,००० वर्ष तक कोई भी संस्था या शासन नहीं रहा है। बड़े कुश या स्तम्भ की तरह का मुख्य वृक्ष उत्तर भारत में साल (शक = सखुआ) तथा दक्षिण भारत में टीक (शकवन = सागवान) है। सखुआ हिमालय की तराई में होता है किन्तु विशिष्ट भूमि तथा जलवायु के कारण शकवन की एक शाखा गोरखपुर से रोहतास, पलामू, पश्चिम ओड़िशा से होते हुए दक्षिण ओड़िशा के मलकान (माल्यवन्त) गिरि के बालिमेला तक गयी है जहां भगवान राम ने ७ साल वृक्षों को भेदा था। यह भारत के भीतर लघु शक द्वीप है जहां के शाकद्वीपीय जाती के हैं। आस्ट्रेलिया में ३०० प्रकार के युकलिप्टस वृक्ष स्तम्भ जैसे हैं, अतः इसे शक द्वीप कहते थे। इसका पश्चिमोत्तर भाग गभस्तिमान (पपुआ न्यूगिनी) का एक भाग जम्बू द्वीप में भी वर्णित है। संवत्सर के भी कई अर्थ हैं- सम्+ वत् + सरति = समान गति से चलता है। क्रमागत दिन गणना के शक के अनुसार इसकी तिथि चलती है। या समाज इसके अनुसार चलता है। त्सर छद्म गतौ-के अनुसार पृथ्वी कक्षा या क्रान्तिवृत्त भी संवत्सर है जिस काल में पृथ्वी का एक चक्र होता है। इसका मार्ग हर विन्दु पर मुड़ रहा है। सूर्य से १ संवत्सर में प्रकाश जितनी दूर तक जाता है, अर्थात सूर्य केन्द्रित १ प्रकाश वर्ष का गोल संवत्सर है। यह माप कई प्रकार से है-सूर्य व्यास का १५७.५ लाख गुणा (विष्णु पुराण, २/८/४), पृथ्वी व्यास का २ घात ३० गुणा (ऋग्वेद, १०/१८९/३) आदि। पृथ्वी के भीतर ३ तथा बाहर सौरमण्डल में ३० धाम हैं। इन धामों के प्राण ३३ देव हैं जिनके चिह्न क से ह तक ३३ अक्षर हैं। यह लिपि चिह्न रूप में देवनगर होने से देवनागरी है। संवत्सर गोल ३३ देवों का क्षेत्र होने से संवत्सर का अर्थ देव या देवगृह भी है। ईएमएस / 07 सितम्बर 24