लेख
04-Aug-2024
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सावन का महीना तो हर साल की तरह आ गया है मगर इस बार उससे जुड़े सारे उपकरण पंद्रह लाख का जुमला बनकर रह गए हैं। पवन है कि शोर करने से बाज नहीं आ रही है। शोर को ‘सोर’ में बदलने की सारी कोशिशें भी ढाक के तीन पात साबित हो रही हैं। बैरी बलमवा बिदेसवा तो पहले भी जाते रहे हैं और सावन में भी गए हैं, लेकिन काली से लेकर मतवाली तक कोई भी घटा उनके प्यार का संदेसवा देश में नहीं फैला सकी है। कोई बलमवा को ही प्यार के संदेश का बैरी बता रहा है तो कोई घटा में ही कालेपन की कमी बता रहा है और किसी को घटा के मतवालेपन में ही कमी नज़र आ रही है। नैया डगमगाने लगी है और खिवैया मौजों का इशारा समझने को तैयार नहीं हैं। मेरे मुहल्ले में सामने मोड़ पर एक शिव मंदिर है जहाँ दोनों वक्त तीन चार घंटे भजन चल रहे हैं। मैं ‘सावन में झूले पड़े’ टाइप के गाने के दौर का बंदा हूँ इसलिए दिनोदिन सिकुड़ती जा रही हरियाली मुझे सावन जैसा कुछ एहसास होने नहीं देती। आज पेड़ों की डालियों पर बँधने वाले झूलों का नहीं बल्कि ‘मेरी गो राउंड’ टाइप के झूलों का दौर है जो किसी सावन के मोहताज नहीं हैं। । मगर फिर भी भजनों का यह कार्यक्रम पूरे माह जारी रहकर मुझे सावन के होने का जबरन एहसास दिलाने पर तुला रहता है। पुजारी जी और तमाम भक्तों का यह दृढ़ विश्वास है कि स्वयं तांडव करने व डमरू बजाने वाले भोले बाबा को अगर डमरू की ध्वनि से कम डेसिबल की ध्वनि में भजन सुनाए गए तो उन तक बात नहीं पहुँच सकेगी। हे भोलेनाथ! अगर तुम सृष्टि के संहारक हो तो हम भी ध्वनि के विस्तारक हैं। इसलिए अपने ‘मन की बात’ तुम तक पहुँचाने के लिए हम ध्वनि के विस्तारक को हृदय विदारक बनाने में कोई कसर बाकी क्यों छोड़ें? सावन मास है शिव की उपासना का। शिव यानी कल्याण, शिव यानी तांडव, और शिव यानी संहार भी। और शिव से हमने क्या लिया? तांडव नृत्य में से सिर्फ़ तांडव, त्रिशूल से सिर्फ़ शूल चुभाने की ‘कला’ ले ली है। और कुछ लोग कल्याण का मतलब सिर्फ आत्मकल्याण समझ बैठे हैं इसलिए नंदियों का सारा चारा भी हड़प लिया है। गीत में सावन महीने में पवन की जिस ध्वनि का संकेत है वह सृजन व रागात्मकता का संदेश देती है। यह अर्थ सिर्फ देशज शब्द ‘सोर’ से ही ध्वनित होता है जहाँ हिंसा का कोई स्थान नहीं है। जबकि ‘शोर’ के अर्थ में हिंसा व विध्वंस दोनों निहित हैं। लोग धर्मस्थलों व केसर की क्यारियों में सिर्फ़ सावन में ही नहीं बल्कि बारहों महीने पवन का ‘सोर’ सुनना चाहते हैं मगर कुछ सिरफिरों की वज़ह से देश आज ‘शोर’ में डूबा है। .../ 4 अगस्त /2024