राज्य
02-Aug-2024
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- चातुर्मास प्रवचन माला मुनिविरंजन सागर जबलपुर, (ईएमएस)। नन्हें जैन मंदिर चार्तुमास कमेटी एवं बरियावाला ट्रस्ट के तत्वाधान में १०८ विरंजन सागर मुनिराज ने प्रवचन माला में कहा कि श्रावक को धर्म क्रिया करती रहना चाहिए। एक तो आहार देना और पूजन करना विशेष है। मुनिराज ने आज प्रवचन में निमित्त प्रभाव के बारे में श्रवको बताया कि निमित्त का प्रभाव मानव जीवन में हमेशा पड़ता है। उन्होंने कहा कि निमित्त का अंतरंग अगर अच्छा है तो परिणाम आश्चर्यजनक होते है। मुनिराज ने कहा कि यहाँ बैठे हर श्रावक की आत्मा में परमात्मा बनने की शक्ति होती है किन्तु हमें कोई निमित्त नहीं मिलने के कारण हम अपनी आत्मा को शुद्ध रूप नहीं दे पा रहे है। मुनिराज विरंजन सागर ने अपनी ही जीवन पर एक बात कहते हुए कहा कि मैं कभी खूब धार्मिक नहीं रहा, एक बार मैं ऐसे ही मंदिर गया वहाँ मुनिराज के दर्शन किए और ऐसा घुल मिल गया गया कि आज में मुनि अवस्था में आपके सामने बैठा हूँ। मेरे साथ एक निमित्त जुडा जिसने मुझे मुनि बना दिया। मुनिराज ने कहा कि तीन चीजें अचानक से होती है दुर्घटना, दान और बैराग्य मुझे अचानक बैरागी आ गया और मैनें मुनि दीक्षा ले ली। मुनिराज ने अपने प्रवचन के दौरान कहा कि श्रावकों शब्दों का जीवन में बहुत महत्व होता है अगर आप वीतरागी मुद्रा में मुनिराजों के समक्ष है तो उसका प्रभाव अलग महत्वपूर्ण होगा आपको शरीर में पॉजिटिव उर्जा का संचार होगा किन्तु आप अपने दोस्तों के साथ है तो आप वैसे ही व्यवहार करेगे। इससे आपमें निगेटिव उर्जा का संचार होगा। इस बात पर मुनिराज द्वारा शांति सागर महामुनिराज का उद्धारण देते हुए कहा कि वह एक बार एक गाँव में पहुंचे तो लोगो ने बताया कि एक शराबी यहाँ बहुत उत्पात मचाता है वह पूरे दिन शराब के नशे में धुत्त रहता है और किसी पर भी हमला कर देता है मुनिराज ने बातें सुनी और कहा मैं वहीं प्रवचन दूंगा जहाँ वह उत्पात करता है लोगों ने मुनिराज को बहुत समझाया जब मुनिराज नहीं माने वहीं प्रवचन हुए शराबी ने महाराज के प्रवचन सुने और नियम लिया कि मैं सभी व्यस्नों का त्याग करता हूँ और हमेशा आपके साथ रहूंगा मुनिराज के साथ रहने से उसका मन में धर्म प्रभावना इतनी तेज हुई कि बाद में उसने मुनि दीक्षा धारण की और बहुत ही कठोर तपचरण किया। इसलिए मुनिराज ने कहा कि जिस प्रकार आप कर्म में सूर्य जैसी गर्मी है तो आपके तप में भी सूर्य जैसी गर्मी होनी चाहिए। श्रवकों से मुनिराज कहते है कि आप कभी भी पापी व्यक्ति से घृणा न करें बल्कि उसके द्वारा किए जाने वाले पाप से घृणा करे न जाने उस व्यक्ति का निमित्त कहां जाकर मिले। प्रवचन माला में पंचमकाल में मुनियों के विषय में कहते हुए १०८ विरंजन सागर मुनिराज ने कहा कि मुनि तो सभी काल में रहेगें और धर्म प्रभावना करते रहेंगे। उन्होंने मिध्यादृष्टि लोगों के लिए कहा कि जो साधु को नमस्कार नहीं करते उन्हें धर्मप्रभावना में दोष उत्पन्न करते है उन्हें पाप कर्म का बंध होता है। जो कई भवों तक उन्हें पीड़ा देगा। १०८ विरंजन सागर मुनिराज के शिष्य द्वारा १०८ विसौम्यसागर मुनिराज द्वारा सुबह सुबह ८ बजे से भक्तामर महिमा के बारे में बताते हुए सभी आवक श्राविकाओं एवं बच्चों को भक्तामर पाठ शुद्ध कैसे पढे।