लेख
27-Jul-2024
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(28 जुलाई स्मृति दिवस पर) राजयोगिनी मनमोहिनी दीदी की ईश्वरीय सेवाओ का ही फल ही कि उनके नाम पर राजस्थान के आबू रोड में एक भव्य व दिव्य मनमोहिनी परिसर बना हुआ है।जिसमे पांच हजार से अधिक भाई बहनों के ठहरने की व्यवस्था के साथ ही अत्याधुनिक तकनीक से बना गॉडली वुड स्टुडियो है।रूद्र ज्ञान यज्ञ के शुरुआती वर्षों सन 1936-37 में ही मनमोहिनी दीदी ओम मंडली से जुड़ गई थी,जिसे अब ब्रह्माकुमारीज या फिर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय नाम से जाना जाता है। मनमोहिनी दीदी का लौकिक नाम गोपी था। उनका जन्म सन 1915 में सिंध, हैदराबाद अविभाजित भारत मे हुआ था।उनकी माता विदुषी रुक्मणी आध्यात्मिक सोच एवं संस्कारवान महिला थी।ओम मंडली के संस्थापक दादा लेखराज जो बाद में ब्रह्मा बाबा के रूप में प्रसिद्ध हुए, के साथ दीदी मनमोहिनी के लौकिक परिवार से पारिवारिक संबंध रहा। दीदी मनमोहिनी एक धनाढ्य परिवार से थी,उनका विवाह भी ऐसे ही एक साहूकार परिवार में किया गया। एक दिन दीदी मनमोहिनी की माँ जो ओम मंडली के सत्संग से जुडी थी,के माध्यम से दादा लेखराज ने दीदी मनमोहिनी को भी सत्संग के लिए बुलवा लिया।मनमोहिनी दीदी को पहली बार में ही दादा लेखराज यानि ब्रह्माबाबा को देख एक अजीब सा रूहानी आकर्षण हुआ। उनको ब्रह्मा बाबा में श्री कृष्ण का आभास हो रहा था। मनमोहिनी दीदी के शब्दों में, मैं जैसे पल भर के लिए स्वर्ग में पहुँच गयी। मुझे कृष्ण बहुत आकर्षित कर रहा था। उस दिन बाबा ने सत्संग में भगवद की गोपियों की बात की , कैसे वो एक के प्यार में मगन थी, तो मुझे अंदर से लगा की यह गोपी और कोई नहीं केवल में ही हूँ। मनमोहिनी दीदी इस ज्ञान यज्ञ के प्रति समर्पित थी, उनके जीवन में बालकपन और मालिकपन का बैलेंस सभी ने देखा है। जो यथार्थ बात होती वह मालिक बन सबके सामने रखती थीं, लेकिन अगर सबकी एकमत नहीं होती तो बालक बन तुरंत उसे भूल जाती थी। कभी व्यर्थ की बहस में समय नहीं गंवाती थी। मनमोहिनी दीदी बालक बनकर ब्रह्माबाबा की अंगुली पकड़कर ज्ञानयज्ञ के हर विभाग का चक्कर लगाती रहती। बाबा उन्हें कहते थे, अभी आपने बाबा की अंगुली पकड़ी है, भविष्य में श्रीकृष्ण आपकी उंगली पकड़कर चलेगा।इस बात का नशा बनाए रखना!मनमोहिनी दीदी गुणमूर्त बनकर सभी के गुण देखती थीं। उनका कहना था कि... विशेष आत्मा बन, विशेषता को ही देखो और विशेषता का ही वर्णन करो।उन्ही के शब्दों में,मैं विशेष आत्मा हूं, शिव परमात्मा की प्यारी संतान हूं --- सदा मोती चुनने वाली होली हंस हूं ---मैं सदा सबकी विशेषताएँ ही देखती हूं और उनका ही वर्णन करती हूं-- इससे मेरी विशेषता भी बढ़ जाती है और उस आत्मा को भी प्रेरणा मिलती है।दीदी कहती थीं कि अगर हम किसी की कमजोरी मन में रखेंगे तो वो हमारी कमजोरी बन जायेगी...इसलिए हम किसी की कमजोरी देखे ही क्यों?... मैं आत्मा तो सर्व की विशेषता देखने वाली विशेष आत्मा हूँ... जब मैं आत्मा किसी की विशेषता देखती हूँ... तो वो मेरी भी विशेषता बन जाती हैं... और उस आत्मा को भी मुझ से पॉजिटिव एनर्जी मिलती हैं... और उनकी विशेषता और अधिक वृद्घि को पाती हैं। मनमोहिनी दीदी का कहना था कि सदा अपने श्रेष्ठ स्वमान मे रहो... मैं गुणमूर्त आत्मा हूँ... सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली हर आत्मा के गुण और विशेषता ही देखो... उनकी विशेषताओं का ही वर्णन करो... मैं परमात्मा समान आत्मा... मास्टर प्रेम का सागर हूँ... हर आत्मा प्रति कल्याण की भावना लिए हुये... हर आत्मा की विशेषताओं को उजागर कर... उनका उमंग-उत्साह बढ़ाने वाली आत्मा।वे कहा करती थी कि सदा सोचो कि मैं सर्व की स्नेही आत्मा बन गई हूँ... समाने की शक्ति द्वारा... सर्व की कमी कमजोरियों का विनाश कर... उनके गुणों और विशेषताओं को देख उन्हें आगे बढ़ाने की निमित्त आत्मा हूँ... सभी के पुरुषार्थ को तीव्र करने वाली बाप समान आत्मा हूँ। वे कहा करती थी कि कई लोग सिर्फ दिखावे के लिए पूजा करते हैं, लेकिन ब्रह्मा बाबा की भक्ति सच्ची और गहरी थी। उनकी भक्ति भावना, उदारता, उदारता और सहृदयता देखकर हर कोई उनकी ओर खिंचा चला आता था। बहुत अमीर होने के बावजूद भी हम अपने सांसारिक जीवन में बहुत दुखी थे।मनमोहिनी बताती थी कि उनके घर में सभी सुख-सुविधाएँ थीं और वे निरंतर दान-पुण्य में लगे रहते थे। गीता और भागवत बहुत प्रिय थे। भागवत में गोपियों की कहानी बहुत पसंद थी। उन्हें रोज़ भागवत में दी गई कहानिया पढ़ने की आदत थी। उन्होंने खुद को आंतरिक रूप से एक गोपी के रूप में देखा। नाम भी गोपी था।जब वे कृष्ण की गोपियों के साथ दैवीय क्रीड़ाओं के बारे में पढ़ती थी, तो मेरे मन में प्रेम के आँसू आ जाते थे। मनमोहिनी दीदी जब पहली बार ब्रह्माबाबा से मिलने गई तो ब्रह्मा बाबा एक छोटे से कमरे में हाथ में गीता ग्रंथ लेकर बैठे थे और आध्यात्मिक प्रवचन यानि सत्संग कर रहे थे। उन्हें उनके प्रति एक विशेष आकर्षण का अनुभव हुआ। उन्होंने ब्रह्मा बाबा के माथे के बीच में एक घूमता हुआ प्रकाश चक्र देखा। बाद में ब्रह्माबाबा ने ओम की ध्वनि का जाप शुरू कर दिया और दीदी उस जाप के प्रेम में खो गई। मनमोहिनी दीदी को ज्योति चक्र प्रकाश को देखकर अनुभव हुआ कि ब्रह्माबाबा ही श्री कृष्ण हैं। सत्संग पूरा होने के बाद उन्होंने ब्रह्माबाबा से कहा कि उनके मन में एक प्रश्न है। बाबा ने पूछा, कैसा प्रश्न? उन्होंने कहा, स्त्री का कोई गुरु नहीं हो सकता क्या? बाबा ने उत्तर दिया, मैंने यह नहीं कहा कि तुम्हें कोई गुरु रखना होगा। ब्रह्माबाबा ने एक कागज और एक पेंसिल ली, सूक्ष्मलोक, मृत्युलोक और ब्रह्मलोक का चित्र बनाया और उन्हें समझाया। दीदी को अनुभव हो रहा था कि बाबा कृष्ण जैसे थे। वे ब्रह्मा बाबा की बात सुनती थी और उनके हृदय में दृढ़ विश्वास हो गया था कि वे वही गोपी है, जिसका वर्णन भागवत में मिलता है और सच मे वे जीवनपर्यंत शिव परमात्मा की गोपी बनकर शिव परमात्मा का मन मोहती रही,इसी कारण मनमोहिनी कहलाई। (लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है) ईएमएस/ 27 जुलाई 24