लेख
23-Jul-2024
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भगवान शिव ही एक मात्र ऐसे परमात्मा है जिनकी देवचिन्ह के रूप में शिवलिगं की स्थापना कर पूजा की जाती है। लिगं शब्द का साधारण अर्थ चिन्ह अथवा लक्षण है। चूंकि भगवान शिव ध्यानमूर्ति के रूप में विराजमान ज्यादा होते है इसलिए प्रतीक रूप में अर्थात ध्यानमूर्ति के रूप शिवलिगं की पूजा की जाती है। पुराणों में लयनाल्तिमुच्चते अर्थात लय या प्रलय से लिगं की उत्पत्ति होना बताया गया है। जिनके प्रणेता भगवान शिव है। यही कारण है कि भगवान शिव को प्राय शिवलिगं के रूप अन्य सभी देवी देवताओं को मूर्ति रूप पूजा की जाती है। शिव स्तुति एक साधारण प्रक्रिया है। ओम नमः शिवाय का साधारण उच्चारण उसे आत्मसात कर लेने का नाम ही शिव अराधना है। श्रावण मास में शिव स्तुति मनोकामना पूर्ण करने वाली होती है। हर साल श्रावण मास में करोड़ो की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव कस्बे व शहर वापस लौटते हैं इस यात्राको कांवड़ यात्रा बोला जाता है। श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु - पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक है। भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आश्रित है।कांवड़ मेले में हरिद्वार में चारों ओर शिवभक्त नजर आएंगे । गंगोत्री, ऋषिकेश या फिर हरिद्वार में हर की पेडी से शुरू होकर गंगनहर के समानांतर कांवड़ियों की आस्था की धारा शुरू हो गई है । कांवड़ मेले में जगह-जगह आलोकिक दृश्य देखने को मिलता है।भारतीय लोगों के लिए कांवड़ मेला बिल्कुल अनसुना नहीं है। सावन प्रारंभ होते ही केसरी रंग के कपड़ों में कांवड़िए अपने कंधे पर कांवड़ लटकाकर उसमें गंगाजल भरकर लाते हैं और अपनी मन्नत के अनुसार किसी विशेष शिव मंदिर में उस गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।गंगाजल लाने और उससे शिवलिंग का अभिषेक करवाने तक का यह पूरा सफर पैदल और नंगे पांव किया जाता है। निश्चित तौर पर यह काम बहुत हिम्मत का है, लेकिन शिव भक्ति के सामने कोई भी मुश्किल नही रहती है।कांवड़ियों के पैरों में पड़ने वाले छाले ही कांवड़ यात्रा में एक बड़ी रुकावट बन जाते हैं लेकिन शिव भक्त हार नही मानते हैं। माना जाता है शिव का जलाभिषेक करने से शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते हैं।सावन के महीने को शिव मास भी कहा जाता है, क्योंकि ये वह महीना होता है जब सारे देवता शयन करते हैं और शिव जाग्रत रहकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।कांवड़ यात्रा हठयोग की प्रतीक है, लेकिन इस दौरान कावड़ियों को कुछ नियमों का पालन भी करना पड़ता है जो अत्यंत आवश्यक होता है।कांवड़ यात्रा शुरू करते ही कावड़ियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा करना वर्जित होता है।कांवड़ यात्रा पूरी होने तक उस व्यक्ति को मांस, मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करना होता है। बिना स्नान किए कांवड़ को हाथ नहीं लगा सकते, इसलिए स्नान करने के बाद ही कांवड़िए अपनी कांवड को छू सकते है।चमड़े की किसी वस्तु का स्पर्श, वाहन का प्रयोग, चारपाई का उपयोग, ये सब कावड़ियों के लिए वर्जित कार्य है। इसके अलावा किसी वृक्ष या पौधे के नीचे भी कावड़ को रखना वर्जित है।कांवड़ ले जाने के पूरे रास्ते भर बोल बम और जय शिव-शंकर का उच्चारण करना फलदायी होता है। कांवड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है। इन सभी नियमों का पालन करना आवश्यक है और इसके लिए कांवड़ियों की संकल्पशक्ति की मजबूती अनिवार्य है।श्रावण मास में कावंड में गंगाजल भरकर पदयात्रा करते हुए शिवालयो में जलाभिषेक करना पूण्यप्राप्ति होना माना जाता है। जिस कावंड में गंगाजल भरकर शिवालय में ले जाया जाता है। उस कावंड को बनाने वाले हिन्दू ही नही बल्कि मुस्लमान भी है।हरिद्वार नगरी के ज्वालापुर,सराय मेंं रफीक के परिवार को साल भर की रोजी रोटी इसी कावंड से मिलती है।यह परिवार रंग बिरंगी कांवड़ तैयार कर अपने घर का चूल्हा जलाता है। कई मुस्लमान हिन्दूओं के इस कावंड मेले में कावंड सहायता शिविर लगाकर धार्मिक सौहार्द एवं आपसी भाईचारे का सन्देश भी देते है।वही इस कावंड मेले को बदरंग करते हुए कुछ कांवडिये भांग का सेवन करते है तो कुछ चरस गांजे का अवैध व्यापार भी इस कावंड मेले की आड में करते है। शिव भक्ति आषाड मास के बीस दिन बीतने के बाद से ही श्रावण मास पूरा होने तक 40 दिन के लिए किये जाने की परम्परा है। जिसकी शुरूआत हो चुकी हैऔर हरिद्वार की सड़कों व हर की पैड़ी पर शिव भक्तो की भीड बढने लगी है। इस बार चार करोड से अधिक कांवडियों के हरिद्वार आकर गंगाजल अपनी कावंड में भरकर ले जाने की सम्भावना है। जिनके लिए हर बार की तरह इस बार भी गंगनहर पटरी मार्ग को कावंड मार्ग बनाया गया है।हालांकि कुछ कांवड़िये राष्ट्रीय राजमार्ग से होकर भी जाने लगे है। कावंडियो के लाठी डन्डे लेकर व डीजे बजाकर चलने पर भी प्रतिबन्ध लगाया गया है। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी यह प्रतिबन्ध हवा हवाई साबित होगा। क्योकि प्रतिबन्ध के बाद भी कावंडियेे लाठी डन्डे लेकर व डीजे बजाकर चलने से नही रूक पाते है। कावंड मेले को सुगम व सुविधाजनक बनाने के लिए पुलिस को जहां कांवडियों के भेष में तैनात किया गया है वही स्वास्थ्य सेवाओ के लिए डाक्टरो की तैनाती,सफाई के लिए पुख्ता इन्तजाम व खादय पदार्थो की शुद्धता व सही रेट वसूलने की हिदायत दी जाती है। इस बार दुकानदारो को अपना नाम दुकान पर अंकित करने की बाध्यता भी की गई है।जिसे लेकर कांग्रेस ने कड़ा विरोध जताया है।परन्तु वास्तव में जब कांवडियो की भीड उमडती है तो पुलिस प्रशासन कांवडियो के सामने बोने होते नजर आने लगते है। कांवडियो के कारण गंगनहर मार्ग तो आम जनता के लिए बन्द होगा ही और लोग पिरान कलियर तक भी नही जा सकेगे वही राष्टीय राजमार्ग के भी कम से कम एक सप्ताह तक बन्द रहने की बाध्यता है। जिस कारण स्कूलो,न्यायालयों व सरकारी गैर सरकारी कार्यालयों का कामकाज प्रभावित होना अवश्यसम्भावी है। सच यह भी है कि कावंड मेले के दिनों में हरिद्वार,रूडकी से लेकर मुज्जफरनगर,मेरठ तक के लोग बन्धक रहेगें। इस कांवड मेले में उत्तराखण्ड के साथ साथ उ0प्र0, राजस्थान, हरियाणा,हिमाचल व पंजाब तक के शिवभक्त कांवडियों के रूप में भाग लेते है। लेकिन साथ ही असमाजिक तत्वों का भी इस मेले में जमावडा रहता है जिनसे निपटना पुलिस के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। शान्ति,सदभाव और पूण्य प्राप्ति की चाह में शिवभक्त कांवडिये श्रावण मास में कांवड लेने के लिए हरिद्वार आते है और अपनी कांवड में गंगा जल भर पदयात्रा करते हुए उसे अपने अराध्य शिव लिंग पर अर्पित कर पुण्य प्राप्ति करते है। ईएमएस / 23 जुलाई 24