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मित्रता-जीवन (लेखक- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन / भोपाल)
06/08/2022
(७ अगस्त अन्तर्राष्ट्रीय मित्रता दिवस)
मानव एक सामाजिक प्राणी हैं और वह समाज से ही सीखता हैं।शिशुअवस्था में वह अपने माता पिता भाई बहिनों के अलावा परिजनों से सीखता हैं और सुधरता और सुधारता हैं।शिशु अवस्था से लेकर युवावस्था के दौर में कई आयाम होते हैं।पहले घर, गली मुहल्ला, प्राथमिक, उच्चतर और महाविद्यालयीन के समय जैसे मित्रों का चयन हो जाय बस यही से बौद्धिक,व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक विकास होने लगता हैं।इसी समय की दोस्ती /मित्रता चिर स्थायी और आजीवन बनी रहती हैं।क्योकि इस समय बौद्धिक चिंतन एकदम सपाट होता हैं।यहाँ कोई स्तर या स्टेटस का कोई स्थान नहीं होता हैं।
इसके बाद व्यवसायिक या नौकरी के साथ विवेक जाग्रत होकर स्वार्थ या स्तरीय सम्बन्ध बनते हैं।यहाँ तक तो बात थी का हैं पर जो अंतरंगता अपने अध्ययन अवस्था की मित्रता में होती हैं वह नहीं रह पाती हैं।आज मित्र बहुत हैं पर मित्रता कम मिलती हैं, मित्रता वह टॉनिक होता हैं जिसमे हृदय की पंखुरी अपने आप खुलकर खुशबु बिखेरती हैं।
मित्रता में एक खिचाव /लगाव /आकर्षण /जूनून होता हैं वह सब कुछ उसमे पा लेता हैं।अपना सुख दुःख बाँट लेता हैं, उससे मिलकर दिल हल्का हो जाता हैं।उससे इतना सुखानुभूति होती हैं जिसका अहसास उसी क्षण मिलता या होता हैं।
आज भी मेरे मित्रों की सूची तो कम हैं पर जो भी हैं बहुत पुरानी हैं।कक्षा पांचवी, छटवीं के मित्रो से लेकर महाविद्यालीन दोस्त जिनकी दोस्ती की उम्र लगभग ६२ वर्षों से भी अधिक हैं आज भी बरकरार हैं, वही प्रेम, वही खुलापन और वही अंतरंगता जब भी मिलते हैं मिलती हैं।
कभी कभी लगता हैं की दोस्त हमारी आत्मा हैं कारण शरीर के साथ आत्मिक आनंद उनके सान्निध्य से मिलता हैं।
सनमैत्री की प्राप्तिसम, कौन कठिन हैं काम।
उस समान इस विश्व में, कौन कवच बलधाम ।
जगत में ऐसी कौन सी वास्तु हैं जिसका प्राप्त करना इतना कठिन हैं जितना कि मित्रता का ?और शत्रुओं से रक्षा करने के लिए मित्रता के समान अन्य कौन सा कवच हैं ?
मैत्री होती श्रेष्ठ की, बढ़ते चंद्र समान।
ओछे की होती वही, घटते चंद्र समान।
योग्य पुरुष की मित्रता बढ़ती हुई चन्द्रकला के समान हैं, पर मुर्ख की मित्रता घटते हुए चन्द्रमा के सदृश्य हैं।
सदा साथ चलना नहीं, और न बारम्बार।
मिलना, मैत्री हेतु हैं, मन ही मुख्याधार।
बारबार मिलना और सदा साथ रहना इतना आवश्यक नहीं हैं, यह तो हृदयों की एकता ही हैं कि जो मित्रता के सम्बन्ध को स्थिर और सुदृढ़ बनाती हैं।
अशुभमार्ग से दूर कर, करदे कर्म पवित्र।
दुःख समय भी साथ जो वही मित्र सनीमित्र.
जो मनुष्य तुम्हे बुराई से बचाता हैं, सुमार्ग पर चलाता हैं और जो संकट के समय तुम्हारा साथ देता हैं बस वही मित्र हैं।
मैत्री वही घनिष्ट हैं, जिस में दो अनुरूप।
आत्मा को अर्पण करे, प्रेमी को रुचिरूप।
वही मित्रता घनिष्ट हैं जिसमे अपने प्रीतिपात्र की मर्ज़ी के अनुकूल व्यक्ति अपने को समर्पित कर दे।
जिसके हृदयहिमाद्रि से, प्रेमसिन्धु की धार,
बहे निरंतर एकसी, उसे विश्व का प्यार।
जो व्यक्ति दूसरे से अटूट प्रेम करता हैं उसे सारा संसार प्रेम करता हैं।
चिरमित्रों के साथ भी, शिथिल न जिसका प्रेम।
ऐसे मानव रत्न को, अरि भी करते प्रेम।
जो व्यक्ति पुराने मित्रों के प्रति भी अपने प्रेम में अंतर नहीं आने देते उन्हें शत्रु भी स्नेह की दृष्टि से देखते हैं।
इस प्रकार मेरे परिवार, परिजन स्नेही जनो के अलावा मित्रों के द्वारा मिला प्रेम ही आज तक जीवन बनाये हुए हैं।मित्र से बातकर मन हल्का होता ही हैं और पुरानी यादों में खो जाने से जो आंतरिक आल्हाद का अनुभव होता हैं वह अनमोल होता हैं।सबके जीवन में मित्र रूपी रत्न रहे और उनको संजोकर अवश्य रखे।
ईएमएस / 06 अगस्त 22
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