|
EMS India
|
EMS TV
|
Jabalpur Express
|
Panchayat.net
|
About
|
Contact Us
|
iOS
Android
Facebook
Twitter
You tube
राष्ट्रीय
राज्य
अंतर्राष्ट्रीय
व्यापार
क्षेत्रीय
खेल
लेख
मनोरंजन
हमसे जुड़े
लॉगिन
लेख
किसान मुद्दा - किसानों पर बरस रही है लाठियां! (लेखक- डॉ. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट / ईएमएस)
01/12/2020
कृषि विधेयक के खिलाफ पंजाब-हरियाणा के किसानों का हल्ला बोल जारी है। कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद पंजाब से किसानों के दल हरियाणा में पुलिस की बैरिकेडिंग को तोड़ते हुए दिल्ली की दो सीमाओं के निकट पहुंच गए। किसानों ने केन्द्र के कृषि कानूनों के विरोध में ‘दिल्ली चलो’ मार्च का आह्वान किया है।
दिल्ली पुलिस ने सुरक्षाकर्मियों की तैनाती बढ़ा दी है, प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने के लिए सिंघु बॉर्डर पर बालू से भरे ट्रक और पानी की बौछार करने वाली गाड़ियां तैनात कर दी गई । साथ ही कंटीले तारों से बाड़ भी लगाई गई। इसके बावजूद, किसानों के दो समूह सिंघु और टीकरी बॉर्डर के पास पहुंच गए और जिसपर दिल्ली पुलिस ने उन्हें दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े।
हरियाणा के भिवानी में सड़क दुर्घटना में एक किसान की मौत हो गई। ट्रैक्टर ट्राली के दुर्घटनाग्रस्त होने से यह हादसा हुआ। हादसे में 40 साल के किसान तन्ना सिंह की मौत हो गई। तन्ना सिंह पंजाब के खयाली चहला वाली जिला मानसा थाना चनीर (पंजाब) का निवासी था। किसानों ने पुलिस को शव कब्जे में नही लेने दिया।किसान आंदोलन से निपटने के लिए
दिल्ली पुलिस ने दिल्ली सरकार से 9 स्टेडियम मांगे हैं। स्टेडियम को अस्थाई जेल बनाया जाएगा।जिनमे किसान आंदोलन में गिरफ्तार किसानों को रखा जाएगा। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा, 'हम आंदोलन तेज करेंगे क्योंकि इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।सरकार अभी किसानों से बात करे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद किसानो से बात करें और उन्हें आश्वासन दिलाए कि एमएसपी खत्म नहीं होगी। किसानों पर आंसू गैस के गोले चल रहे हैं, कोई सुन नहीं रहा किसानो की। अब मुजफ्फरनगर में सड़क जाम होगी और आगे हरियाणा का रुख देखते हुए आगे की स्थिति पर निर्णय लिया जाएगा।'
किसानों को आशंका है कि इससे न्यूनतम मूल्य समर्थन प्रणाली समाप्त हो जाएगी।वही किसान यदि पंजीकृत कृषि उत्पाद बाजार समिति-मंडियों के बाहर अपनी उपज बेचेंगे तो मंडियां समाप्त हो जाएंगी।साथ ही ई-नाम जैसे सरकारी ई ट्रेडिंग पोर्टल का क्या होगा?इस विषय पर सरकार मौन है।हालांकि
मोदी सरकार इन तीन कृषि विधेयकों को कृषि सुधार में अहम कदम बता रही है तो किसान संगठन और विपक्ष इसके खिलाफ हैं और वे सड़क और सोशल मीडिया में अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं ।जबकि लोकसभा व राज्यसभा में तीनों बिल पास हो गए हैं। बिल पास होने के विरोध में एनडीए सरकार की सहयोगी पार्टी अकाली दल की नेता और केंद्रीय खाद्य संस्करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और सरकारी खरीद जारी रहेगी, कुछ शक्तियां किसानों को भ्रमित करने में लगी हैं लेकिन इसे किसानों का मुनाफा बढ़ेगा।परन्तु यह सब पारित विधेयकों में व्यवस्था नही दी गई।इसी लिए विरोध हो रहा है। किसानों को लग रहा है सरकार उनकी मंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को देना चाहती है। किसानों को लगता है सरकार का यह कदम किसान विरोधी है।
बीती 17 सितंबर को लोकसभा में दो बिल कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 और कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 लोक सभा से पारित हुआ, जबकि एक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक पहले ही लोकसभा में पारित हो चुका है।यह अध्यादेश कहता है कि बड़े कारोबारी सीधे किसानों से उपज खरीद कर सकेंगे, लेकिन जिन किसानों के पास मोल-भाव करने की क्षमता नहीं है, वे इसका लाभ कैसे उठाऐंगे?"
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह भी विधेयक की नीतियों को लेकर सवाल उठा रहे हैं। वे कहते हैं, "सरकार एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात कर रही है, लेकिन उसे ये नहीं पता कि जो किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेच पायेगा। क्या किसानों के पास इतने साधन हैं और दूर मंडियों में ले जाने में खर्च भी तो आयेगा।"
इस अध्यादेश की धारा 4 में कहा गया है कि किसान को पैसा फसल बेचने के तीन कार्य दिवस में दिया जाएगा। किसान का पैसा फंसने पर उसे दूसरे मंडल या प्रांत में बार-बार चक्कर काटने होंगे। न तो दो-तीन एकड़ जमीन वाले किसान के पास लड़ने की ताकत है और न ही वह इंटरनेट पर अपना सौदा कर सकता है। इसी कारण किसान इन बिलो के विरोध में है।"
कृषि मामलो विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं, "जिसे सरकार सुधार कह रही है वह अमेरिका, यूरोप जैसे कई देशों में पहले से ही लागू होने बावजूद वहां के किसानों की आय में कमी आई है। अमेरिका में सन 1960 के दशक से किसानों की आय में गिरावट आई है। इन वर्षों में यहां पर अगर खेती बची है तो उसकी वजह बड़े पैमाने पर सब्सिडी के माध्यम से दी गई आर्थिक सहायता है।" बिहार में सन 2006 से एपीएमसी नहीं है,जिसका फायदा उठाकर व्यापारी बिहार से सस्ते दाम पर खाद्यान्न खरीदते हैं और उसी वस्तु को पंजाब और हरियाणा में एमएसपी पर बेच देते हैं । इन विधेयको के खिलाफ कांग्रेस ने संसद भवन में गांधी स्टैचू पर धरना दिया और कहा कि यह काला कानून है। इससे किसान को नुकसान होगा। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने मोदी सरकार को किसान विरोधी सरकार बताया है। उनकी राय में इस व्यवस्था से किसानों को उनकी फसलों के उचित दाम नहीं मिलेंगे। इन बिलों में कहीं भी एमएसपी की गारंटी नहीं दी गयी है। मंडी कुछ बड़े लोगों के कब्जे में होगी और अपनी मनमर्जी से वह फसलों के दाम तय करेंगे।जिससे किसान बर्बाद हो जाएगा।कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के शब्दों में, ‘किसान ही हैं जो ख़रीदता खुदरा में है और अपने उत्पाद की बिक्री थोक के भाव करते हैं। मोदी सरकार के तीन ‘काले’ अध्यादेश किसान-खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार हैं ताकि न तो उन्हें एमएसपी का लाभ व हक़ मिलें और मजबूरी में किसान अपनी ज़मीन पूंजीपतियों को बेच दें।' जिन उत्पादों पर किसानों को एमएसपी नही मिलती, उन्हें वे कम दाम पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं।उदाहरण केे तौर पर,
पंजाब में पैदा होने वाले गेहूँ और चावल का सबसे बड़ा हिस्सा या तो पैदा ही एफ़सीआई द्वारा किया जाता है, या फिर एफ़सीआई उसे ख़रीदता है। साल 2019-2020 के दौरान रबी के मार्केटिंग सीज़न में, केंद्र द्वारा ख़रीदे गए क़रीब 341 लाख मिट्रिक टन गेहूँ में से 130 लाख मिट्रिक टन गेहूँ की आपूर्ति पंजाब ने की थी।किसानों को डर है कि एफ़सीआई अब राज्य की मंडियों से ख़रीद नहीं कर पाएगा, जिससे एजेंटों और आढ़तियों को क़रीब 2.5% के कमीशन का घाटा होगा, साथ ही राज्य भी अपना छह प्रतिशत कमीशन खो देगा।सबसे बड़ी बात यह है कि किसानों के भाग्य का फैंसला करने वाले इन तीनो कृषि सम्बन्धी विधेयकों को लेकर किसानों और किसान संगठनों से चर्चा तक नही की गई।लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस विषय पर अन्नदाता किसान को विश्वास में लेना चाहिए था।ऐसा करके किसानों के इस विरोध व बवाल से बचा जा सकता था। दुःखद बात यह भी है कि सरकार अन्नदाता किसान से हाथ फैलाकर मिलने के बजाए उसपर लांठिया भांज रही है,पानी की बौछार छोड़ रही है।यह तो सीधे सीधे किसान का अपमान ही हुआ,जिससे सरकार को बचना चाहिए।
01दिसम्बर/ईएमएस
© EMS India 2018
Powered by :
ITfy Technologies Pvt Ltd