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रणबाँकुरे महाराणा प्रताप (लेखक- प्रो.शरद नारायण खरे / ईएमएस)
05/08/2022
भारत के इतिहास का,रक्खा जिसने मान ।
उस वीरों के वीर की,है सदियों पहचान ।।
परम प्रतापी जो रहे,रक्खी जिनने आन ।
माटी के सम्मान की,वे अनुपम पहचान ।।
मुग़लों से लोहा लिया, हे भारत के वीर ।
राजपुताना लाज का,किया सुरक्षित चीर ।।
वे गौरव,रणबांकुरे,हल्टी घाटी लाल ।
मेवाड़ी इस वीर ने ,सच में किया कमाल ।।
चेतक भी तो है अमर,संग किया संघर्ष ।
उसका जो बलिदान है,वह वीरोचित हर्ष ।।
मानसिंह का हर लिया,तुमने पल में मान ।
हे राणा तुम शूर थे,लिये अनोखी शान ।।
कालजयी थी वीरता,करती है उद्घोष ।
वतन सुरक्षा के लिए,हो ऐसा ही जोश ।।
समझौता ना ही किया,नहीं झुकाया शीश ।
शक्ति-भक्ति के साथ था,ईश्वर का आशीष ।।
अभिनंदन,अभिवंदनम् ,हे ! माटी के पूत ।
तुम बनकर आये यहां,त्याग-शौर्य के दूत ।।
खाई रोटी घास की,पर खोया ना तेज ।
रक्षा करने आन की,चुनी शूल की सेज ।।
नमन् करूं झुक-झुक तुम्हें,हे चित्तौड़ी लाल ।
श्रध्दा के अर्पित सुमन,सदा-सदा,हर हाल ।।
ईएमएस / 05 अगस्त 22
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