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(विचार-मंथन) जहरीली शराब का कहर (लेखक-सिद्धार्थ शंकर / ईएमएस)
13/01/2021
मध्यप्रदेश के मुरैना में मंगलवार को जहरीली शराब पीने से 19 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में 7 लोग मानपुर तहसील के पृथ्वी गांव और छेरा गांव के हैं जबकि तीन लोग सुमावली के पावली गांव के हैं। घटना के बाद लोगों में काफी गुस्सा है। प्रशासन स्थिति को संभालने में लगा है। यह घटना बताती है कि प्रदेश में जहरीली शराब का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। स्थानीय प्रशासन और पुलिस तो आंखें मूंदे हुए हैं और किसी पर भी कार्रवाई कर पाने में लाचार है। हमेशा से होता यही आया है कि जब भी इस तरह की घटनाएं होती हैं तो फौरी और रस्मी तौर पर कुछ अधिकारी-कर्मचारी निलंबित किए जाते हैं और मृतकों के परिजनों को मुआवजा देकर पिंड छुड़ा लिया जाता है, लेकिन ऐसी कार्रवाई किसी पर नहीं होती, जिससे कोई सबक ले सके। वही अब भी हुआ है। जहरीली शराब का कारोबार करने वालों का जाल काफी बड़ा है। जिस तरह यह धंधा चलता आ रहा है उससे तो लगता है कि यह व्यवस्था का हिस्सा बन गया है। और जहरीली शराब ही क्यों, इस तरह के कई अवैध कारोबार होते हैं जिनके बारे में सरकारें, प्रशासन और पुलिस सब जानते हैं, लेकिन उन पर लगाम नहीं लगाते। यह कोई छिपी बात नहीं है कि अवैध शराब का धंधा स्थानीय प्रशासन और पुलिस की मिलीभगत से ही चल पाता है। कच्ची शराब का सेवन आमतौर पर निचले तबके के लोग करते हैं, क्योंकि यह सस्ती होती है और आसानी से मिल जाती है। इसलिए निम्न-वर्गीय बस्तियों, झुग्गी बस्तियों में कच्ची शराब के मटके ज्यादा चलते हैं। पाउचों तक में शराब बिकती है। ग्रामीण इलाकों में कच्ची शराब का कारोबार बड़े पैमाने पर चलता है। पर पुलिस और प्रशासन इन्हें इसलिए चलने देता है, क्योंकि ये धंधे उगाही के बड़े स्रोत होते हैं। जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है तो उसे रफा-दफा कर दिया जाता है और थोड़े दिन बाद फिर से धंधा शुरू हो जाता है। ऐसे में स्थानीय प्रशासन कठघरे में आएगा ही। यह कोई पहला मौका नहीं है जब जहरीली शराब के कारण इतनी मौतों की खबर आई हो। मगर पिछली घटनाओं से भी कोई सबक नहीं लिया जाता। अगर सरकार ठान ले तो जहरीली शराब बेचने वालों का सफाया करना कोई मुश्किल काम नहीं है! मुरैना की यह घटना बताती है कि प्रशासन अगर सचेत रहता तो शायद यह हादसा टल सकता था। इस हादसे ने सरकारी तंत्र की लापरवाही को उजागर कर दिया है। शराब के अवैध कारोबार को रोकने का पहली जिम्मेदारी आबकारी विभाग की विभाग की होती है। जाहिर है, इस महकमे ने ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई, वरना जहरीली शराब कहां से आ रही है और कहां बन रही है, इसका समय रहते पता चल सकता था। कच्ची शराब सस्ती होती है और आसानी से मिल जाती है, इसलिए निम्न-वर्गीय बस्तियों में कच्ची शराब के मटके ज्यादा चलते हैं। पुलिस और प्रशासन इन्हें इसलिए चलने देता है, क्योंकि ये धंधे उगाही के बड़े स्रोत होते हैं। ऐसे में सौ लोगों की जान जाने के लिए क्या सरकार और प्रशासन को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए? इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर सरकारें चाहें तो अवैध शराब का कारोबार करने वालों के खिलाफ अभियान छेड़ा जा सकता है, लेकिन विडंबना यह है कि शक्तियों और अधिकारों से परिपूर्ण तंत्र भी शराब माफिया के सामने घुटने टेक देता है। इसी का नतीजा है कि धड़ल्ले से देशी शराब की भट्टियां चलती हैं, जहरीली शराब भी बनती है और बड़ी संख्या में लोग मारे जाते हैं।
13जनवरी/ईएमएस
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