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(विचार-मंथन) चीन की उकसावे की रणनीति (लेखक-सिद्धार्थ शंकर / ईएमएस)
01/12/2020
लद्दाख में लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद के बीच चीन हमेशा उकसावे वाली रणनीति अपना रहा है। एलएसी पर निर्माण कार्य के बाद अब चीन तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर अब तक का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है। अगले साल से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हो जाएगा। चीन कह रहा है कि बांध बनने से दक्षिण एशियाई देशों से सहयोग के रास्ते खुलेंगे। इस प्रोजेक्ट को लेकर भारत ने चीन से ट्रांस बॉर्डर नदी समझौते का पालन करने को कहा है। चीन ने 14वीं पंचवर्षीय योजना में ब्रह्मपुत्र पर हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट बनाने की बात कही है। इस बड़े बांध की तैयारी ने भारत और बांग्लादेश की चिंता बढ़ा दी है। दोनों ही देश ब्रह्मपुत्र के पानी का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि चीन ने इन चिंताओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह दोनों देशों के हितों का ध्यान रखेगा। भारत ने चीन के इस कदम का विरोध किया है।
चीन की इस तरह की गतिविधियां उसकी युद्ध की मानसिकता और तैयारियों का संकेत हैं। इससे यह जाहिर होता है कि वह किसी न किसी बहाने भारत को उकसा कर लड़ाई छेडऩे की फिराक में है। इस साल मई से लेकर अब तक के घटनाक्रम से भी इसकी पुष्टि होती है। मई महीने में सीमा पर घुसपैठ और मारपीट की घटनाओं की परिणति 15-16 जून की आधी रात गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर हमले के रूप में देखने को मिली, जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे। उसके बाद अगस्त के आखिरी हफ्ते में भी चीनी सैनिकों ने आक्रामक रुख दिखाया, जिसे भारतीय सैनिकों की सजगता से नाकाम कर दिया गया था।
इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले कुछ समय में भारत को लेकर चीन ने जो रुख दिखाया है, उसका दोनों देशों के संबंधों बुरा असर पड़ा है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरों से उम्मीद बंधी थी कि अब दोनों देशों के बीच रिश्तों के नए युग की शुरुआत होगी और सीमा विवाद हल करने की दिशा में बढ़ा जाएगा। पहली बार चीनी राष्ट्रपति सितंबर 2014 में भारत आए थे और दूसरी बार पिछले साल अक्टूबर में। लेकिन भारत की उम्मीदों पर पानी फिरने में साल भर भी नहीं लगा। मई से ही चीन ने लद्दाख क्षेत्र में एलएसी पर जिस तरह की घुसपैठ और सैन्य गतिविधियां जारी रखी हुई हैं, उससे तो कहीं नहीं लगता कि चीन भारत का अच्छा दोस्त और पड़ोसी हो सकता है। ऐसे में हैरानी पैदा करने वाली बात यह है कि एलएसी पर चीन जो कर रहा है, क्या वही रिश्तों का नया युग है! विदेश मंत्री ने खुद इस हकीकत को स्वीकार किया है कि पैंगोंग में जून में भारतीय सैनिकों पर हुए हमले ने तीस साल से चले आ रहे सामान्य रिश्तों को खत्म कर डाला। इससे न सिर्फ राजनीतिक स्तर पर, बल्कि जनता के स्तर पर भी गहरा असर पड़ा है। मुश्किल यह है कि सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति बनाए रखने के लिए भारत-चीन के बीच अब तक जो करार हुए हैं, चीन ने उनकी धज्जियां उड़ाई हैं। दोनों देशों के बीच 1996 में हुए समझौते में साफ कहा गया है कि कोई भी पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा के दो किलोमीटर के दायरे में गोली नहीं चलाएगा। वर्ष 2013 में हुए सीमा रक्षा सहयोग करार में सहमति बनी थी कि यदि दोनों पक्षों के सैनिक आमने-सामने आ भी जाते हैं तो वे बल प्रयोग, गोलीबारी या सशस्त्र संघर्ष नहीं करेंगे। लेकिन चीन ने इन समझौतों को दरकिनार करते हुए भारतीय सैनिकों को निशाना बनाया। हाल में उसने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश को लेकर बेतुका बयान दे डाला, जिसका भारत ने कड़ा प्रतिवाद किया। दरअसल, अब लद्दाख में भारत ने जिस तरह की सैन्य तैयारियां कर ली हैं, उससे भी चीन परेशान है। वह समझ चुका है कि भारत अब उसे मुंहतोड़ जवाब देने की मजबूत स्थिति में है। चीन की विस्तारवादी गतिविधियां क्षेत्र में अशांति को ही जन्म दे रही हैं। सवाल है ऐसे तनावपूर्ण हालात में कैसे सीमा विवाद सुलझेगा और दो पड़ोसी देश कैसे शांति से रह पाएंगे?
01दिसम्बर/ईएमएस
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