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भारतीय मुक्केबाजी की पहचान हैं मैरीकॉम (लेखक- योगेश कुमार गोयल/ईएमएस)
04/12/2018
भारत की ओलम्पिक पदक विजेता चर्चित मुक्केबाज मैरीकॉम (मैंगते चंग्नेइजैंग मैरीकॉम) 24 नवम्बर को नई दिल्ली में आईबा (एआइबीए) विश्व चैम्पियनशिप के फाइनल में अपने से कई वर्ष छोटी यूक्रेन की हना को परास्त कर स्वर्ण पदक पर कब्जा कर महिला विश्व चैम्पियनशिप में छह स्वर्ण पदक जीतने वाली विश्व की पहली मुक्केबाज बन गई हैं। इससे पहले मैरीकॉम और आयरलैंड की केटी टेलर के नाम विश्व चैम्पियनशिप में पांच-पांच स्वर्ण पदक का रिकॉर्ड था लेकिन केटी अब प्रोफैशनल बॉक्सर बन जाने के कारण आईबा विश्व चैम्पियनशिप में शामिल नहीं हुई। मैरीकॉम सात बार फाइनल खेलने वाली दुनिया की पहली महिला मुक्केबाज भी बन गई हैं। वह वर्ष 2002, 2005, 2006, 2008 और 2010 में विश्व चैम्पियनशिप जीत चुकी हैं जबकि 2001 में उन्होंने रजत पदक हासिल किया था। छठा स्वर्ण जीतकर उन्होंने क्यूबा के महान् मुक्केबाज माने जाते रहे फेलिक्स सेवोन के उस रिकॉर्ड की भी बराबरी कर ली, जो उन्होंने विश्व चैम्पियनशिप में 6 स्वर्ण और एक रजत जीतकर कायम किया था।
हालांकि मैरीकॉम को 8 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद विश्व चैम्पियनशिप में कोई पदक हासिल हुआ किन्तु तीन बच्चों की मां का दायित्व बखूबी निभा रही मैरीकॉम ने गृहस्थ जीवन और पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए 35 साल की उम्र में अपने से 13 साल छोटी युवा मुक्केबाज सना ओखोटा को धूल चटाकर अपने कैरियर को बुलंदियों पर ले जाकर साबित कर दिखाया कि उनके इरादे आज भी कितने बुलंद हैं और उनके पंच में अभी भी कितनी ताकत है। वैसे तो उनके मुक्कों का लोहा पूरी दुनिया मानती रही है किन्तु पिछली बार वह चोटग्रस्त होने के कारण चैम्पियनशिप में हिस्सा नहंी ले सकी थी। वह अभी तक 14 स्वर्ण, दो रजत और दो कांस्य पदकों के साथ अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में 18 पदक जीतकर मुक्केबाजी में दुनियाभर में भारत को गौरवान्वित कर चुकी हैं। मैरी की विराट उपलब्धियों के कारण ही एआईबीए द्वारा उन्हें मैग्नीफिसेंट मैरी (प्रतापी मैरी) का सम्बोधन दिया जा चुका है। विश्व पटल पर मुक्केबाजी में भारत का नाम रोशन करने के लिए मैरीकॉम को भारत सरकार द्वारा 2003 में ‘अर्जुन पुरस्कार’, 2006 में ‘पद्मश्री’, 2009 में सर्वोच्च खेल सम्मान ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’ तथा 2013 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित जा चुका है। 2014 में मैरीकॉम के जीवन पर आधारित फिल्म ‘मैरी कॉम’ भी प्रदर्शित हो चुकी है, जिसमें बॉलीवुड की सुपरस्टार प्रियंका चोपड़ा ने मैरीकॉम का किरदार निभाया था।
मैरीकॉम के अब तक के बेहतरीन प्रदर्शन पर नजर डालें तो मैरीकॉम ने 2001 में पहली बार महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप जीती थी, जिसमें उन्होंने रजत पदक हासिल किया था। उसके बाद 2002 में आईबा वर्ल्ड वुमेन्स सीनियर बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2003 में एशियन महिला चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2004 में ताईवान में आयोजित एशियन महिला चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2005 तथा 2006 में आईबा महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2008 में निंग्बो (चीन) में विश्व महिला मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था। उसके बाद 2009 में हनाई (वियतनाम) में एशियन इंडोर गेम्स में स्वर्ण, 2010 में ब्रिजटाउन (बारबाडोस) में विश्व महिला एमेच्योर बॉक्सिंग चैम्पियनशिप तथा अस्ताना (कजाकिस्तान) में स्वर्ण, 2011 में हाइकू (चीन) में एशियन वुमेन्स कप में स्वर्ण, 2012 में उलानबटोर (मंगोलिया) में एशियन वुमेन्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2014 में इंचियोन (दक्षिण कोरिया) में एशियाई खेलों में स्वर्ण, 2017 में हू चेई मिन्ह (वियतनाम) में एशियन वुमेन्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2018 में गोल्डकोस्ट (आस्ट्रेलिया) में कॉमनवैल्थ खेलों में स्वर्ण और अब नई दिल्ली में आईबा महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर एक अनोखा इतिहास रचा है। 2010 के एशियाई खेलों तथा 2012 के लंदन ओलम्पिक में मैरीकॉम ने कांस्य पदक जीता था।
1 मार्च 1983 को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक गांव में एक गरीब किसान के घर जन्मी मैरी कॉम का आरम्भिक जीवन संघर्षों और अभावों में बीता। ऐसे माहौल में उनके लिए खेलों में रूचि के बावजूद परिवार के कमजोर आर्थिक हालातों के चलते प्रोफैशनल ट्रेनिंग के ख्वाब संजोना बेहद मुश्किल था। प्राथमिक शिक्षा लोकटक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल और सेंट हेवियर स्कूल से पूरी करने के बाद मैरी आगे की पढ़ाई के लिए इम्फाल के आदिमजाति हाई स्कूल गई किन्तु परीक्षा में फेल होने के बाद स्कूल छोड़ दिया और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय से परीक्षा दी। 17 साल की उम्र में जब एक रिक्शेवाले ने उनके साथ छेड़छाड़ की कोशिश की थी तो मैरी ने अपने मुक्के के पंच से उसे लहूलुहान कर दिया था। मैरीकॉम की शादी ओन्लर कॉम के साथ हुई थी और उनके जुड़वाँ बच्चे हैं।
मुक्केबाजी में आने से पहले वह एक एथलीट थी और उनके मन में बॉक्सिंग के लिए जुनून उस वक्त पैदा हुआ, जब उन्होंने 1999 में खुमान लम्पक स्पोर्ट्स कॉम्पलैक्स में कुछ लड़कों के साथ 4-5 लड़कियों को भी बॉक्सिंग रिंग में बॉक्सिंग के दांव-पेंच आजमाते देखा। उस वक्त उन्हें अहसास हुआ कि अगर वे लड़कियां बॉक्सिंग कर सकती है तो फिर वह क्यों नहीं? अगले ही दिन वह भी बॉक्सिंग के रिंग में पहुंच गई और पहले ही दिन के अभ्यास के दौरान मैरी के मुक्कों से एक लड़का और दो लड़की रिंग में घायल हो गए। उसी दौरान वहां मौजूद कोच की नजर मैरीकॉम पर पड़ी, जिसने उन्हें बॉक्सिंग खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। बस, यहीं से मैरीकॉम ने बॉक्सिंग में ही अपना कैरियर बनाने की ठान ली। हालांकि उनके पिता उनके बॉक्सिंग में प्रैक्टिस के फैसले के सख्त खिलाफ थे क्योंकि पिता का मानना था कि बॉक्सिंग का खेल महिलाओं के लिए नहीं है किन्तु मैरीकॉम ने हार नहीं मानी और अपनी लग्न, जज्बे और कड़ी मेहनत के बल पर वह मुकाम हासिल कर दिखाया, जिसकी मैरीकॉम जैसी कठिन परिस्थितियों में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। फिलहाल वह गरीब बच्चों को बॉक्सिंग का प्रशिक्षण देने के लिए एक बॉक्सिंग एकेडमी भी चला रही हैं। बहरहाल, विश्व चैम्पियनशिप जीतकर रिकॉर्ड बना चुकी मैरीकॉम का इरादा अब 2020 के टोक्यो ओलिम्पक में भी ऐसा ही रिकॉर्ड कायम करने का है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ओलम्पिक में भी उनके मुक्कों का लोहा पूरी दुनिया मानेगी।
04दिसम्बर/ईएमएस
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